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अंजानी सी आहट

एक अंजानी सी आहट है कोई पहचानी सी चाहत है।। हर दर पर देती दस्तक है इस दिल में थोड़ी हलचल है, आंखों में बहते सपने हैं, कुछ उनके हैं कुछ अपने हैं।। कुछ झूठे हैं कुछ सच्चे हैं, जैसे भी हैं पर अच्छे हैं, ख्वाबों का मोती सच्चा है, पर थोड़ा सा कच्चा है।। ये राहें अंजानी सी हैं, पर नजरें पहचानी सी हंै, जिनको न देखा न जाना वो होने को अपना है।। भावनाओं के सागर में हम खाते हिचकोले हैं। कुछ वो सीधे-सीधे हैं कुछ हम भोले-भाले हैं। ये कहना है लोगों का हमसे खुशियां की ये दस्तक है अब बाहें पसार खड़े हो जाओ, बहार बुलाने वाली है। दीपा श्रीवास्तव

फिर हारी इंसानियत

एक तरफ हर घर में अपनी बेटियों को लेकर ये दशहत है कि उनको कैसे सुरक्षित रखा जाए। मगर दिल्ली में फिर से पांच साल की बच्ची के साथ हुए बलात्कार ने फिर से दिल दहला दिया। मेरे समझ में ये नहीं आ रहा कि आखिर ऐसा लोग कैसे कर सकते हैं। कुछ ज्यादा समझदार लोगों का मानना है कि जो लोग बलात्कार जैसा अपराध करते हैं। वो मानसिक रोगी होते हैं मगर उन पुलिस अधिकारियों को क्या कहेंगे। जो ये कहते हैं कि पैसे लो और चुप रहो। अब बेटी के साथ जो भी हुआ उसे जाने दो। क्या ऐसा ही चलता रहेगा। दिल्ली रेप केस के बाद लगा था कि अब इस अपराध पर कुछ ठोस नियम बनेगा लोग डरेंगे मगर यहां तो कहानी ही उल्टी है। लोगों में जागरुकता के बजाय एक आइडिया मिल गया है कि किस तरह अपराध करके बचा जाए। कितने अफसोस की बात है कि जिन्हें लोग मानसिक रोगी कहते हैं वो अपनी खुद की मां-बहन का मुंह नहीं काला करते बल्कि दूसरों पर नजर रखते हैं। ऐसा मर्दों के साथ ही क्यूं है। हर बार वो क्यूं महिला जाति के साथ जोर जबरदस्ती करते हैं। यही रहा तो वो दिन भी दूर नहीं है , जब लड़कियां भी गुट में निकलेंगी और अकेले चलते लड़कों पर फबत्तियां कसेंगी और उनको भी ऐसे ह...

ख्वाबों की चादर

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ख्वाबों की जो चादर है कुछ मैली है, कुछ धुंधली है कुछ धीमे-धीमे चलते हैं, कुछ हवा से बातें करते हैं।। जब आंख खुली तो देखा, कुछ पास मिले कुछ दूर चले सिरहाने का जो तकिया था, वो कब फूलों के जैसा था।। जिस नुक्कड़ पर हम मिलते थे उसका अब नामों निशान नहीं जिस घर का सपना देखा था अब उसका भी अरमान नहीं।। कुछ चाय के प्याले बिखरे थे, कुछ प्लेटें टूटी-फूटी थीं जिनके संग खेला था गुच्चू और खो-खो वो सखियां हमसे रूठी थीं।। एक ठेले वाला होता था जो अपना सहारा होता था कुछ कंपट बेचा करता था, कुछ चंपक देखा करता था।। चंद पल में वो सब बीत गया, वो वक्त ही हमसे छूट गया न साथ रहे अब वो साथी न साथ रहा अब वो सावन।। जहां पेड़ पर लच्छी डाली खेली थी, और उसकी कलाई टूटी थी मां भी हम पर चिल्लाई थीं, चाचा न करी पिटाई थी।। वो पेड़ अब मोटा तगड़ा है वो भी हमसे अब अकड़ा है, एक बार शिकायत की थी मुझसे, न छोड़कर हमको यूं जाना।। ख्वाबों की बगिया खाली है, यादों की चादर भारी है दीपा श्रीवास्तव

शब्द

शब्द वो अनमोल चीज जो प्यार से निकले तो दिल जीत ले नफरत से निकले तो दिल चीर दे शब्द लाल, हरे, नीले, पीले बहुरंगी शब्द शब्द जिसने मुझे प्यार का एहसास कराया, शब्द जिसने मुझे दुनिया के क्रू रूप को दिखाया ये शब्द ही तो हैं जिनसे मैं दिन रात, सुबह शाम खेलती हूं यही तो मुझे रोजी-रोटी और जीने का जज्बा देते हैं ये शब्द ही तो हैं जिसने मुझे तेरे होने का एहसास कराया था, ये वही हैं जिसने तेरे गैर होने का एहसास कराया था ये वही शब्द हैं जो रात की तन्हाई में मेरे चारों ओर घूमते हैं चीखते हैं, चिल्लाते हैं और मुझे रूलाते हैं ये शब्द ही तो हैं जो आज भी हर ओर हर क्षण मेरे होने का एहसास दिलाते हैं मुझे पहचान दिलाते हैं कितने सच्चे और अच्छे हैं ये शब्द दीपा श्रीवास्तव

want be part ARMY

ऐसा तभी क्यूं होता है कि हमारी पुलिस हमारा प्रशासन तब जागता है जब कुछ  अनहोनी हो जाती है। हाल ही में हुए हैदराबाद और कुंभ हादसे के बाद प्रशासन पूरी तरह मुस्तैद है। हर जगह चेकिंग और  अलर्ट जारी हो रहा है क्या ये सब पहले नहीं हो सकता था। इतनी सक्रियता लगातार नहीं बरती जा सकती। कल मैं ऑफिस के वर्क से कैंट गयी सल बहादुर बिहार जहां की एक मूक बधिर बच्ची ने कोरिया विंटर ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीता है। गेट पर जाते है इंट्री आई कार्ड सबकुछ सक्योरिटी रीजन से चेक कराना पड़ा। ऐसा करके न मुझे बुरा लगा न मेरे सहयोगी फोटो ग्राफर को। इसके पहले भी करीब दो साल पहले मैं कैंट गयी थी तब भी सुरक्षा इतनी ही मुस्तैद थी तब भी मुझे आई कार्ड, डीएल दिखाना पड़ा मुझे बिल्कुल नहीं बख्शा गया कि मैं लड़की हूं, ये बहुत बात तब भी अच्छी लगी थी आज भी अब भी अच्छी लगती है। हर बार वहां जाकर दिल करता है मैं भी इन्हीं लोगों आर्मी का हिस्सा बन जाऊं, मगर जब मैं मॉल में जाती हूं अकेले कैमरा लेकर यहां तक की मेरे पर्स में भी कभी-कभी चाकू और ब्लेड होता है मगर कभी इतनी संघन जांच नहीं होती। आज तक मैंने ये कभी नहीं सुना की कैंट...

हमारा वैलेंटाइन

वैलेंटाइन डे को लेकर हर एक लड़के लड़की में उत्साह होना स्वाभाविक है। सो थोड़ा सा मुझमें भी रहता है, हां ये अलग बात है कि सिर्फ मनाने का क्रेज है मगर वो किसी वैलेंटाइन के साथ नहीं, अपनी खुशी और अपनी आजादी के साथ। सो इस वैलेंटाइन डे को मैंने अपनी दोस्त पूजा के साथ अनाथ आश्रम का रुख कर लिया ताकि खुशी के पल उन लोगों से साथ बिताया जाए जो ये नहीं जानते कि परिवार का प्यार क्या होता है। एक लंबी ड्राइविंग के बाद हम दोनों पहुंचे मोतीनगर जहां गल्र्स अनाथअश्राम में जाकर बच्चों के साथ खूब मस्ती की और उनसे ढ़ेरों बातें भी की। इसे आप ये जरूर कह सकते हैं कि हम दोनों के दोस्त तो बहुत हैं मगर प्यार और वैलेंटाइन का शौक है न जरूरत, क्योंकि हम दोनों अपने काम और आजादी में बहुत खुश रहते हैं। खैर वहां दो ऐसी लड़कियां भी मिली जिनसे मिलकर दिल यही किया कि उनको अपने साथ रखें, सच इतने सीमित साधन में जमकर पढ़ाई फिर हाईस्कूल यूपी बोर्ड 83 परसेंट लाना अपने आप में काबिल-ए-तारीफ है। तो ऐसा रहा हमारा वैलेंटाइन जिसमें मेरे कुछ खास दोस्तों ने चॉकलेट भी दी टेडी भी दिया फिर क्या जरूरत है वैलेंटाइन बनाकर सिर दर्द लेने की।

दिल मांगे मोर

जिंदगी के भाग दौड़ में हर पल यूं गुजर रहा है जैसे कि मैं एक सफर में हूं, हर रोज एक नये शख्स से रुबरू होती हूं और रोज नयी मंजिल की तलाश शुरू हो जाती है। बस ऐसा ही कुछ जिंदगी का और मेरा वास्ता है। नए दोस्त, नए सपने, नया माहौल सब कुछ बदला-बदला सा नजर आ रहा है। बस कुछ नहीं बदल रहा है तो वो है मेरा जुनून और मेरी आकांक्षाएं तो नित निरंतर बढ़ती जा रही हंै और बार-बार यही कहती हैं ये दिल मांगे मोर