फिर हारी इंसानियत
एक तरफ हर घर में अपनी बेटियों को लेकर ये दशहत है कि उनको कैसे सुरक्षित रखा जाए। मगर दिल्ली में फिर से पांच साल की बच्ची के साथ हुए बलात्कार ने फिर से दिल दहला दिया। मेरे समझ में ये नहीं आ रहा कि आखिर ऐसा लोग कैसे कर सकते हैं। कुछ ज्यादा समझदार लोगों का मानना है कि जो लोग बलात्कार जैसा अपराध करते हैं। वो मानसिक रोगी होते हैं मगर उन पुलिस अधिकारियों को क्या कहेंगे। जो ये कहते हैं कि पैसे लो और चुप रहो। अब बेटी के साथ जो भी हुआ उसे जाने दो। क्या ऐसा ही चलता रहेगा। दिल्ली रेप केस के बाद लगा था कि अब इस अपराध पर कुछ ठोस नियम बनेगा लोग डरेंगे मगर यहां तो कहानी ही उल्टी है। लोगों में जागरुकता के बजाय एक आइडिया मिल गया है कि किस तरह अपराध करके बचा जाए। कितने अफसोस की बात है कि जिन्हें लोग मानसिक रोगी कहते हैं वो अपनी खुद की मां-बहन का मुंह नहीं काला करते बल्कि दूसरों पर नजर रखते हैं। ऐसा मर्दों के साथ ही क्यूं है। हर बार वो क्यूं महिला जाति के साथ जोर जबरदस्ती करते हैं। यही रहा तो वो दिन भी दूर नहीं है , जब लड़कियां भी गुट में निकलेंगी और अकेले चलते लड़कों पर फबत्तियां कसेंगी और उनको भी ऐसे ही प्रताडि़त करेंगी जैसे अभी ये कर रहे हैं। ऐसा कुछ हो इससे पहले हमारे मठाधीशों को जागकर एक ठोस कानून बना देना चाहिए , वरना हर लड़की हर लड़के यहां तक की अपने बाप और भाई की भी इज्जत करना बंद कर देगी।
दीपा श्रीवास्तव
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