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Showing posts from February, 2010
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क्या यही पत्रकारिता है? मुझे पता इसे पढ़ कुछ लोगो को बुरा लगेगा...... हम सब ये जानते है की क्या है हमारा फर्ज़.सबसे ज्यादा मजबूत पक्ष पत्रकारिता जिसे अमिताभ बच्चन की फिल्म में साफ़ दिखा दिया गया. रण एक ऐसी फिल्म जिसे हर पत्रकार को देखनी चाहिए. यक़ीनन ये उन्हें उनका फर्ज़  दिला देगी.जो की अब बिजनेस का रूप ले चूका है.अखबार विज्ञापन के लिए परेशां है. टी.वी चेनल टी.आर.पी और इन सब के बीच पिसता है आम आदमी. क्या पत्रकारिता पैसे के लिए की जाती है.? और पैसा किस हद तक इन्सान को गिरा सकता है ये सब है इस फिल्म में. विजय हर्ष वर्धन मालिक(बच्चन) जो की एक जाने माने कर्त्यव्य निष्ठ पत्रकार होते है.इनका चेनल एक मात्र ऐसा चेनल होता है.जो सिर्फ सच्ची खबर ही दिखाता है.जो टी.आर.पी. से ज्यादा देश की सेवा और मीडिया का फर्ज़ निभाने में यकीं रखता है. ये तो हम आप सब जानते है जो सच कहता जो बिकता नहीं उसके साथ बस गिने चुने लोग ही होते है.ऐसा ही कुछ हर्ष वर्धन मालिक है.उनका चेनल घाटे में रहता है.बेटे को ये बात बहुत बुरी लगती है. वो चाहता है उसकी भी टी.आर.पी बढे .मगर हर्ष वर्धन को ये बात न गवार होती है.मगर बेटे क
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तुम मेरे पास रहोगी लोगो को कहते सुना था समय और मौत किसी का इंतजार नहीं करते. पर आज इसे सच होते भी देखा.मेरी सबसे प्यारी बहन जो दोस्त ज्यादा थी. ऊपर वाले ने उसे बुला लिया..कहाँ उसकी डोली उठने को थी,कहाँ  उसकी मय्यत हो गयी. एक पल में सब कुछ ख़त्म हो गया. आखरी बार उसे मै एक झलक देख भी न सकी. क्यूंकि सबको ऐसा लगता था मै उसको देख नहीं पाऊँगी, मै आज भी ऑफिस में हूँ उसकी कही हुई सारी बात मुझे याद आती है.वो कैसे बोलती थी कितनी शरारत करती थी सब कुछ मुझे याद है.वो थी तो मुझसे बड़ी पर हमेशा मुझे अपने दोस्त की तरह ही प्यार करती थी. एक बात जिसे सोच के मुझे अभी भी हंसी आ जाती है,हम नानी के घर गए थे माँ की दादी जो अभी पिछले साल मरी है. मतलब मेरी परनानी 125  साल की होके.उन्हें जुएँ  निकलवाने का बड़ा शौक था हर किसी से वो जुएँ निकालने को ही कहती थी. इतफाक से उन्होंने बिल्लो से कह दिया एक दिन उसने निकला,फिर दूसरे दिन भी निकल दिया,पर नानी हर किसी को ऐसे ही तंग करती थी.दिन में कम से कम 5 लोगो से तो वो जुएँ निकलवाती ही थी. अचानक उसे क्या सूझा तीसरे दिन जैसे नानी ने उसे बुलाया.उसने कहा आई नानी