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Showing posts from September, 2011

सबकुछ है मां

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दर्द में भी हमारे लिए मुस्कुरा देती है मां जब होती हैं हमारी आंखें नम तो रोती है मां जिस रात नींद नहीं आती हमें इस जमाने के सितम से, उस रात हमें अपने आंचल में छुपा लेती है मां, दर्द कितना भी दे जिंदगी हमें, हर बार हौसले के पर लगा देती है मां चंद पल के लिए बहक जाते हैं हमारे कदम लड़खड़ाते कदमों को हमारे सहारा देती है मां, हम ही हो जाते हैं बेमुर्रवत दीपा, हमारे आंखों के आंसू तो खुद की आंखों मंे सजा लेती है मां, कैसी भी हो, कहीं भी हो, पर हर बार बुरी नजरों से हमें बचा लेती है मां, जब हार जाती है जिंदगी जमाने से, ऐसे में हमें थपकी देकर सुला देती है मां, खुदा का शुक्र करो बंदो, जिसका कोई मोल नहीं ऐसी होती है मां जो नहीं समझते मां की कीमत को उनके ही किस्मत से गुम होती है मां, तेरी हो या मेरी हो हर किसी की एक जैसी होती है मां दुख होता है जमाने के किस्मत को देखकर, कैसे रहते हैं वो जिनके पास नहीं होती है मां, deepa srivastava

बोलती बंद करती है बोल

सदियों से औरतों पर मर्दों का बस चलता आ रहा है ये बात हर कोई जानता है। इतिहास के पन्नों  से लेकर हमारे आपके घरों में भी छुकना और अपनी इच्छाओं को दफन करना ये कहीं न कहीं औरतों के हिस्से में ही आता है। जो इसका विरोध करती हैं उनको बदचलन करार दिया जाता है या बागी कहा जाता हैै। बचपन से लेकर बुढ़ापे तक कुर्बानी की कहानी होती है औरत औरत और सिर्फ औरत। परिवार के लिए प्यार को, प्यार के लिए परिवार को पति के लिए करियर को, बॉयफ्रंेड के लिए पसंद को। ऐसी ही एक कहानी है बोल दो दिल को अंदर तक झकझोर देती है। काफी अरसे से प्लान करने के बाद आज बोल मूवी देखी। समाज मंे बढ़ती जनसंख्या और मर्दों की सोच को मुद्दा बनाकर फिल्म को बनाया गया। पाकिस्तान में हिट होने के बाद शायद भारत में भी ये सुपरहिट ही जाएगी। एक मुस्लिम परिवार पर बनी फिल्म में बेटे के लिए लगातार सात बेटियां पैदा हो जाती है और एक बेटा होता भी है तो न तो बेटी होता है और न ही बेटा, ऐसे में परिवार का मुखिया हकीम बीवी को दोष देता है कि जरूर तुममे कोई कमी है इसलिए बेटा नहीं हो रहा है। इतना ही नहीं अपने किन्नर औलाद की शक्ल से भी उसे नफरत होती है। हद तो

काला अतीत

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इंसान अपने अतीत से कितना भी पीछा छुडाना चाहे मगर वो कहीं न कहीं से उसके सामने आ ही जाता है, भले ही उसमें उस इंसान की खता हो या न हो। रविवार दिन 18 सितंबर वैन्यू सहारागंज सुबह का समय एक तो विकएंड तो दूसरी तरफ लोगों का वीकऑफ ऐसे में हर कोई छुट्टी का लुत्फ उठा रहे थे। छुट्टी के साथ ही किसी का बर्थ डे , वेडिंग एनवर्सरी और किसी को प्रपोज डे। अधिकतर लोग अपने दोस्त के साथ पीवीआर के पास मौजूद थे। कोई मूवी का पहला शो देखने आया था तो कोई अपने भाई बहन के बैंक का पेपर दिलाने आया था उसमें मैं भी मौजूद थी क्योंकि मेरे बहन का भी पेपर था और सहारागंज मेरे लिए भी कुछ खास है। डोमेस्टिक शॉपिंग से लेकर सबकुछ वहीं से होता है। मगर ये क्या मूवी के लुत्फ और फन के बजाय कोई चेहरा जो उदास था शायद उसकी उदासी किसी की नफरत से ज्यादा थी, शायद उसके अंदर कुछ टूट गया था। हर कोई अपने पार्टनर के साथ और एक लड़की अकेली यादों में खोयी दिख रही शायद किसी के आने का इंतजार कर रही थी मगर जिसका इंतजार था वो तो नहीं आया दिल दुखाने के लिए एक जोड़ा जरूर और आ गया, जिसने उसको किसी दीन दयाल पार्क में देखा था किसी लड़के के साथ जहां पर

मेरे ब्रदर की दुल्हन

हंसती खेलती दुनिया को ठेंगे पर रखने वाली लड़की डिम्पल और सीधा-साधा कुश, दो अलग तरह के लोगों की बेहतरीन जोड़ी। कहानी में बड़े भाई लव के पांच के साल प्यार का बेवकूफी भरा ब्रेकअप होता है और फिर भाई की दुल्हन की तलाश शुरू होतीै। अखबार में इश्तेहार के बाद जिस लड़की से शादी के बाद शुरू होती वो छोटे भाई कुश की कॉलेज फ्रेंड निकलती जो की एकदम बिंदास, सुट्टा मारने से लेकर पीना पिलाना और डिस्को जाना ये सारी उसकी आदतों का हिस्सा होता है। समय से साथ सारी आदतें थोड़ी बदलती हैं मगर डिंपल का बिंदासपन नहीं बदलता हैै। शादी की तैयारी के बाद सगाई वाले दिन डिम्पल और कुश को लगता है कि वो एक दूसरे को प्यार करते हैं। ऐसी मूवी जिसमें लड़की घोड़ी पर बैठकर जाती है और लड़को भगाकर ले जाती हैैैै। डिंपल उर्फ डी ऐसी लड़की जो अपनी लिमटेशन खुद बनाती है वही करती है जो उसे सही लगता और अगर ऐसे में कोई उससे बदसलूकी करता है उसकी मम्मी दीदी भी कायदे से करती है। फिल्म में ब्वॉयज की मेंटालिटी के बारे में दिखाया गया इतना ही नहीं आज की जनरेशन इगो के चक्कर में पार्टनर से ब्रेकअप तो कर लेते हैं मगर उनको दिल नहीं निकाल पाते हैं। ख

be........

no need to care poeple but need to care ur heart Beat, No need to warry for everyone but need to warry for them to whom you loves and to whom who is needy, never thing what saying ur friend but alway listen what your heart saying, coz heart is in left but its alway right, never blam people alway find a resion bhind every happing, never think what you did for anyone, just think who did everything for you. don,t be selfish just be a humen..... deepa srivastava

पानी जौ और तिल का

पितृपक्ष के शुरू होते लोगों के घरों में पूर्वजों के पानी और खाना देने का सिलसिला शुरू हो गया। ऐसा लगता है मानों पूर्वज जिंदा हो उठे हैं और हर कोई इनके सत्कार में जुट गया है। दादा जी की गए तो कई साल हो गए मगर साल इन दिनों मम्मी पापा उनकी सेवा में जुट जाते हैं खासकर के मां, क्योंकि उनकी अपनी सासू मां अपनी मां से भी ज्यादा प्यारी हैं। खैर यहां बात इस बात की नहीं है कि कौन किसे प्यारा है और किसे नहीं मगर सच तो ये है कि पहले लोगों में पितृपक्ष को लेकर कई धारणाएं थी जो आज तब्दील हो चुकी हैं। कोई इसे पूर्वजों के दोबारे हमारे घर आने का समय मानता था तो कोई इसे पूर्वजों की सेवा का अवसर मगर अब तो नजारा ही कुछ और है। अब इस भागती जिंदगी में अमूमन लोगों के पास इन सब के लिए वक्त ही नहीं हैै। इस बारे में अगर किसी से बात करो तो लोगों का जवाब यही होता है कि जब जीती जी उनकी सेवा नहीं की तो मरने के बाद पानी देने से क्या होता है। कल मां आई और उनको यहां भी दादी-बाबा को पानी देते देखा तो वो जमाना याद आ गया जब मेरा पूरा परिवार साथ रहता था गांव में पितृपक्ष की शुरूआत होते ही मालिन काकी आती थी और ढेर सारे फूल
 अजीब लगता है जब हमारी ही उम्र के लोग संस्कारों को झुठलाते फिरते हैं, इतना ही नहीं खुद के आगे किसी की सुनते भी नहीं है कुछ दिन पहले मैं बस से सफर कर रही थी एक बुर्जग अपनी पोती के साथ बैठे थे उन्हांेने ने अनायास ही उस लड़की को पुराने जमाने के खाने का जिक्र कर दिया ऐसा बिल्कुल नहीं है कि आज वो व्यंजन हमारे थाली का हिस्सा नहीं है मगर उस हद तक नहीं है जिस हद तक हुआ करते थे। पिछले चार साल से लखनऊ में रह रही हूं और मम्मी-पापा भी साथ में नहीं है ा ऐसे में भाई बहनों को पुराने रिवाजों और संस्कारों के अवगत कराना मेरा फर्ज भी है और जरूरी भी हैै। खैर बात उन बुर्जुग की करें तो उन्होंने उसे बस इतना बताया कि बिटिया तुमने नागपंचमी में न तो घर में दूध और लावा छिडका और न ही दलभरी पूरी ही बनाई। त्यौहार के दिन बेटा तवा भी नहीं चढाया जाता है और तुमने............ मैं भी गांव के परिवेश से जुडी हूं तो उनका दर्द समझ में आ रहा था। वहीं वो लडकी बाबा पर विदक गई और कहा बाबा आखिर आप चाहते क्या हैं अगर हम नागपंचमी में पूडी नहीं खाएंगे और सकट में तिल के लड्डू नहीं खाएंगे तो क्या हम हिंदू से मुस्लमान हो जाएंगे या मर
 अजीब लगता है जब हमारी ही उम्र के लोग संस्कारों को झुठलाते फिरते हैं, इतना ही नहीं खुद के आगे किसी की सुनते भी नहीं है कुछ दिन पहले मैं बस से सफर कर रही थी एक बुर्जग अपनी पोती के साथ बैठे थे उन्हांेने ने अनायास ही उस लड़की को पुराने जमाने के खाने का जिक्र कर दिया ऐसा बिल्कुल नहीं है कि आज वो व्यंजन हमारे थाली का हिस्सा नहीं है मगर उस हद तक नहीं है जिस हद तक हुआ करते थे। पिछले चार साल से लखनऊ में रह रही हूं और मम्मी-पापा भी साथ में नहीं है ा ऐसे में भाई बहनों को पुराने रिवाजों और संस्कारों के अवगत कराना मेरा फर्ज भी है और जरूरी भी हैै। खैर बात उन बुर्जुग की करें तो उन्होंने उसे बस इतना बताया कि बिटिया तुमने नागपंचमी में न तो घर में दूध और लावा छिडका और न ही दलभरी पूरी ही बनाई। त्यौहार के दिन बेटा तवा भी नहीं चढाया जाता है और तुमने............ मैं भी गांव के परिवेश से जुडी हूं तो उनका दर्द समझ में आ रहा था। वहीं वो लडकी बाबा पर विदक गई और कहा बाबा आखिर आप चाहते क्या हैं अगर हम नागपंचमी में पूडी नहीं खाएंगे और सकट में तिल के लड्डू नहीं खाएंगे तो क्या हम हिंदू से मुस्लमान हो जाएंगे या मर