देने का सुख कहते है हर दिन कुछ न कुछ नयी सीख लेकर आता है. चाहे वो अपने छोटे से हो या बड़े पर रोजाना कुछ जरूर मिलता है. मुझे ये लगता पिछले कुछ दिनों में बहुत कुछ बदल गया. ऐसा लगता था सबके लिए मै हूँ पर मेरे लिए सिर्फ जिम्मेदारिय है. वो आज भी है पर बंदिश नही है. वैसे भी ये सफ्ताह देने का है "देने का सुख" मैंने भी दिया एक माँ को उसकी बेटी,एक लड़की को उसकी उसकी इज्जत, एक भाई को उसकी बहेन और खुद को समय .जो की बहुत जरुरी था मेरे लिए. लोगो को भुला कर जीना मुश्किल होता है.पर नामुमकिन नहीं आज ये बात मुझे पता चली अब मेरे पास खुद को अपडेट करने लिए समय है. किसी को मदद करने के लिए समय है. आज बहुत अच्छा लगा जब किसी क एक काल पर मै बिना डरे बिना किसी से पूछे उसकी मदद के लिए गयी.वो एक औरत थी जिसे कुछ पैसो और प्यार की जरुरत थी. लोग उसे मरने को उतावले थे ऐसा लग रहा था की मुझे ही मर देंगे.लेकिन मै नहीं डरी. अब वो भी ठीक है और मै भी. किसी ने ठीक ही लिखा जब आप किसी को प्यार करते हो तो उसे सारा समय देते हो. और खुश होते हो.क्युकी आपने किसी को कुछ दिया इसलिए आप खुश होत...
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सफर .......... जिन्दगी का एक समय वो था जब एक लड़की अपने पेपर देने के लिए भी घर से दूर नहीं जाना चाहती थी.कहीं भी जाना हो माँ को होना जरुरी है. फिर चाहे वो पेपर देना हो या कहीं रिश्तेदारों के घर जाना हो.अगर मम्मी है तो जाना है वरना नहीं.बचपन से आखों में एक सपना था की कुछ करना है कुछ बनना है मगर घर से दूर रह कर नहीं.उसे क्या पता था की दुनिया की रेस में आगे निकलना है तो माँ घर परिवार सबसे दौर जाना होगा.बात तब की है जब उसे स्नातक की परीक्षा के पहली बार माँ को छोड़ कर जाना पड़ा एक महिना पहले से ही रोना धोना शुरू, खाना पानी बंद जैसे माँ कहे बेटा रोते नहीं थोड़े दिन की बात है फिर वापिस आ जाओगी .लेकिन उसका एक ही जवाब रहेंगे? अब इस पर माँ बेटी दोनों का विलाप शुरू हो जाता.वहीँ पापा मजा लेते की ये शादी करके कैसे जियेगी.उसका भी जवाब हाज़िर था.लड़की कहती मुझे नहीं करनी शादी अगर करोगे तो आप और मम्मी जाओगे "मै नहीं".किसी तरह ये सारा समय बीत गया मगर माँ से दौर रहने की आदत नहीं सीखी.मगर आज वही लड़की घर हजारो किलो मीटर दूर अपने परिवार से माँ अलग है.क्युकी अब बचपना नहीं रहा.साथ ह...
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गणपति बप्पा मोरया, हमने तुमको छोड़ दिया गणेश चतुर्थी श्रद्धा और आस्था, पूजा अर्चना के बाद दुखी मन से विसर्जन. हम वापस अपने घर और हमारे देवता ! अब न श्रद्धा दिख रही है न विश्वास.और गणपति हो गए कूड़ा. अगर कोई वैसे हमारे इश्वर को छु ले तो बवाल मगर आज सब शांत है. क्या ये हमे शोभा देता है.एक बार हम जी भगवन की पूजा करते उन्ही को फेंक देते है.क्या यही आस्था है.
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LOVE WAS NOT TRUE we know everyone fall in love in there life.but i have a great experience of love.i seen as lover who loved her sweetheart too much even he unble to sleep without listen her voice n song.weekly meetng is fix.they can live without water but can,t live without meet. but few day ago i heard that boy become angary with that girl.coz she was unble to talk him.there was many people in her home.she said him sorry unless they are i cant give you much time.the boy became angary and he mailed girl naked pic to her friend.they all seen that photo. again boy say sorry and girl forgive him.girl knew she can,t live without him too.but she was fear with him she don,t want to meet him weelky.that man again became angary and he aboused her like .....sali kamini aagayi aauokat pr.. sorry reader i can,t write her name.i hope u can understant respet of women. DEEPA
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मत कीजिये ऐसा कितना अजीब सा लगता है.जिन बच्चो को माँ बाप इतने प्यार और दुःख दर्द से पलते है. उनको अपने हांथो से ही मार देते है.जो माँ अपने जिगर के टुकड़े के लिए रात-रात भर जगती है;उसे भूख से तडपता नहीं देख पाती है.उसी की छोटी सी ख़ुशी के लिए उसका गला घोट कर मार देती है,क्युकी जिदगी का सबसे अहम् फैसला वो खुद से कर लेते है. क्या ये ठीक है? जब आप अपने बच्चे को मर्जी का खाने की इजाजत देते है.कपडे पहनने की इजाजत देते है तो शादी मर्जी की क्यों नहीं? क्या अपनी मर्जी से जीवनसाथी चुनना गुनाह है.निरुपमा ने ऐसा कोई काम नहीं किया था की उसे उसकी जान गवानी पड़े.अरे जिसकी हम पूजा करते है उस भगवान ने भी तो प्रेम किया था.उसे जब हम पूजते है तो इन्सान को मार क्यों दिया जाता है.हर जन्माष्टमी...
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गुलमोहर एक दौर था जब बागो में कोयल की कु कु होती थी; तपती धूप में जब हम उन बागों में घूमा करते थे, आम के पेंड़ से हम टिकोरे तोड़ा करते थे, वो लू के थपेड़ो में धमा चोकड़ी भरना, डाली- डाली पर कूद कूद कर खेलना, जब कल देखा कुछ बच्चो को आंधी में, वो बीन रहे थे फूल गुलमोहर के, तेज हवाएं बहती थी, रहता था आंधी का इंतजार, डाली हिलती थी हम दौड़ते थे, पेंड़ो के नीचे कब टपकेगा वो, हम निहारते सब पेड़ो को, अब गांव नहीं है न बचपन है, न ही आमो की डाली है, गली में एक पेंड़ गुलमोहर का, जिसके फूल बीनते बच्चे है, दीपा