बोलती बंद करती है बोल



सदियों से औरतों पर मर्दों का बस चलता आ रहा है ये बात हर कोई जानता है। इतिहास के पन्नों  से लेकर
हमारे आपके घरों में भी छुकना और अपनी इच्छाओं को दफन करना ये कहीं न कहीं औरतों के हिस्से में ही आता है। जो इसका विरोध करती हैं उनको बदचलन करार दिया जाता है या बागी कहा जाता हैै। बचपन से लेकर बुढ़ापे तक कुर्बानी की कहानी होती है औरत औरत और सिर्फ औरत। परिवार के लिए प्यार को, प्यार के लिए परिवार को पति के लिए करियर को, बॉयफ्रंेड के लिए पसंद को। ऐसी ही एक कहानी है बोल दो दिल को अंदर तक झकझोर देती है। काफी अरसे से प्लान करने के बाद आज बोल मूवी देखी। समाज मंे बढ़ती जनसंख्या और मर्दों की सोच को मुद्दा बनाकर फिल्म को बनाया गया। पाकिस्तान में हिट होने के बाद शायद भारत में भी ये सुपरहिट ही जाएगी। एक मुस्लिम परिवार पर बनी फिल्म में बेटे के लिए लगातार सात बेटियां पैदा हो जाती है और एक बेटा होता भी है तो न तो बेटी होता है और न ही बेटा, ऐसे में परिवार का मुखिया हकीम बीवी को दोष देता है कि जरूर तुममे कोई कमी है इसलिए बेटा नहीं हो रहा है। इतना ही नहीं अपने किन्नर औलाद की शक्ल से भी उसे नफरत होती है। हद तो तब हो जाती है जब वो पहले ही रिश्ते पर बड़ी बेटी का निकाह कर देता है वहां बेटी के साथ भी वही होता है जो उसके मां के साथ हुआ। उसे भी बच्चा पैदा करने की मशीन समझा जाता है। मगर बगावत करने वली जुनैब पति के परिवार में 11 लोगों को देखकर बच्चा न पैदा करने के लिए कहती है तो पति बदचलन कहता है और वो ससुराल छोड़ देती है। वहीं बाकी की जिंदगी कैद होती है, ससुराल से मायके आने के बाद पिता से बगावत करने पर बड़ी बेटी को मार भी पड़ती है मगर वो अपनी बहनों को दोजख में नहीं जाने देना चाहती और मरते दम तक लडती रहती है। जुनैेर के पिता पेशे से हकीम होते हैं जिनकी माली हालत दिन बदिन बिगड़ती जाती है। फिर भी बच्चा पैदा करने की भूख नहीं खत्म होती है यहां तक की दो जून की रोटी को भी लाले पड़ जाते हैं।वहीं दूसरी बहन को पड़ोस के ही लड़के से प्यार हो जाता है दोनों होते मुस्मिल हैं पर सिया और सुन्नी के बीच का फासला होता है मगर बड़ी बहन के बदौलत दोनों की शादी हो जाती है। और हकीम साहब अपने किन्नर बेटे सैफी को जान से मार देते हैं क्योंकि समाज के रखवाले उसका रेप कर देते हैं। मगर हकीम खुद को कानून से बचाने के लिए मस्जिद में आए जकात के पैसे भी पुलिस को रिश्वत में दे डालता हैै। और खुद पैसों के लिए एक तवायफ से निकाह कर लेता है। इतना ही नहीं जब पत्नी को इस की खबर होती है तो बच्चों को बताने से मना किया। पत्नी नहीं मानी तो उसकी पिटाई भी करता है। तवायफ की बच्ची को भी जान से मारता तो जुनैर अपने पिता का कत्ल कर देती है। बाप को मारने के बाद जुनैर अपना इल्जाम भी कबूल करती है। उसे बचाने के लिए एक टीवी रिपोर्टर काफी जद्दोजहद करती है मगर आला अधिकारियों की लापरवाही के चलती जुनैर को फांसी हो जाती है।  पूरी फिल्म में समाज की दोगली सोच को दिखाया गया है। एक तरफ तो बेटियों की कमी है तो दूसरे तरफ किन्नरों की भी दुर्दशा है उन्हें का पैदा होना गुनाह है। पति घर के बाहर कुछ भी करे मगर औरत घर से बाहर न निकले।
फिल्म की पंच लाइन है जब पाल नहीं सकते तो पैदा क्यूं करते हो, जब पैदा करना पाप नहीं है तो मारना गुनाह क्यूं है और जुनैर की दर्द भी आवाज में अगर मैं खुदा होती तो हर मर्द से एक-एक बच्चा पैदा करवाती।
अगर जरा भी दिल मां बहन, औरत की इज्जत है तो ये फिल्म जरूर देखनी चाहिए

जब औरत अपने जवाब से मर्द को लाजवाब कर देती है और वो कुछ गलत होते हैं तभी उनकी दामन को दागदार साबित करते हैं। मगर सच्चाई तो ये है कि चंद पल के लिए वो सुकून में रहते हैं फिर तबाही उनका पीछा नहीं छोड़ती। इतना ही नहीं वो कभी खुद पर नजर नहीं डालते कि वो कितना गलत हैं।
मैनें देखा वेब में मूवी देखते समय मर्दों के आंखों से भी आंसू आ गए।
दीपा श्रीवास्तवा

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