सबकुछ है मां
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दर्द में भी हमारे लिए मुस्कुरा देती है मां जब होती हैं हमारी आंखें नम तो रोती है मां जिस रात नींद नहीं आती हमें इस जमाने के सितम से, उस रात हमें अपने आंचल में छुपा लेती है मां, दर्द कितना भी दे जिंदगी हमें, हर बार हौसले के पर लगा देती है मां चंद पल के लिए बहक जाते हैं हमारे कदम लड़खड़ाते कदमों को हमारे सहारा देती है मां, हम ही हो जाते हैं बेमुर्रवत दीपा, हमारे आंखों के आंसू तो खुद की आंखों मंे सजा लेती है मां, कैसी भी हो, कहीं भी हो, पर हर बार बुरी नजरों से हमें बचा लेती है मां, जब हार जाती है जिंदगी जमाने से, ऐसे में हमें थपकी देकर सुला देती है मां, खुदा का शुक्र करो बंदो, जिसका कोई मोल नहीं ऐसी होती है मां जो नहीं समझते मां की कीमत को उनके ही किस्मत से गुम होती है मां, तेरी हो या मेरी हो हर किसी की एक जैसी होती है मां दुख होता है जमाने के किस्मत को देखकर, कैसे रहते हैं वो जिनके पास नहीं होती है मां, deepa srivastava