गुलमोहर
एक दौर था जब बागो में कोयल की कु कु होती थी;
तपती धूप में जब हम उन बागों में घूमा करते थे,
आम के पेंड़ से हम टिकोरे तोड़ा करते थे,
वो लू के थपेड़ो में धमा चोकड़ी भरना,
डाली- डाली पर कूद कूद कर खेलना,
जब कल देखा कुछ बच्चो को आंधी में,
वो बीन रहे थे फूल गुलमोहर के,
एक दौर था जब बागो में कोयल की कु कु होती थी;
तपती धूप में जब हम उन बागों में घूमा करते थे,
आम के पेंड़ से हम टिकोरे तोड़ा करते थे,
वो लू के थपेड़ो में धमा चोकड़ी भरना,
डाली- डाली पर कूद कूद कर खेलना,
जब कल देखा कुछ बच्चो को आंधी में,
वो बीन रहे थे फूल गुलमोहर के,
तेज हवाएं बहती थी,
रहता था आंधी का इंतजार,
डाली हिलती थी हम दौड़ते थे,
पेंड़ो के नीचे कब टपकेगा वो,
हम निहारते सब पेड़ो को,
अब गांव नहीं है न बचपन है,गली में एक पेंड़ गुलमोहर का,
जिसके फूल बीनते बच्चे है,
दीपा
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