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Showing posts from October, 2019

मीरा और मुंबई लोकल

मुंबई लोकल या मुंबई की लाइफ लाइन कह लो। जिस तरह इसे लाइफ लाइन कहते हैं यकीनन ये किसी लाइफ लाइन से कम नहीं है। चलती फिरती लाइफ और उसकी चुनौतियों से खचा-खच भरी होती है। जब तक मैं मुंबई में थी मुझे ना तब कार और कैब से चलने में मज़ा आता था और ना अब। अब तो और भी नहीं क्योंकि बैंगलोर में कोई और विकल्प ही नहीं है। यहां ट्रैफिक से ऊबने से बेहतर है इंसानों के बीच उनकी बातें सुनी जाए और कुछ सीखा जाए। फिलहाल टिकट तो फर्स्ट क्लास का लिया मगर हमेशा की तरह चढ़ी मैं सेकंड क्लास में ही। दरअसल जैसे-जैसे लोगों की पैसे का क्लास ऊपर उठता है। उनकी इंसानियत का दर्जा लोगों से मेल जोल, दिल खोलकर बात करने का ग्राफ नीचे गिरता जाता है। इसलिए सेकंड क्लास जहां बनावट और डर नहीं है। सबसे मज़ेदार लोकल सेकंड क्लास की शॉपिंग होती है। खैर आज अब एयरपोर्ट से निकली तो ट्रेन में मीरा से मुलाक़ात हुई। लोगों के घर में काम करती हैं मीरा मस्त और एकदम हरफन मौला, दिल खोल कर बात की मीरा ने। करीब अधेड़ उम्र की महिला मगर शादी को महज 12 साल ही हुए हैं। भीड़ ठीकठाक थी जैसे मैंने बैग ऊपर डाला चुपचाप फोन लेकर एक कोने में खड़ी हो गई।...

वो सुकून वाली नींद

समय इतनी तेज़ी से बदलता है, ऐसा लगता है मानों कल की ही बात है, पापा मेरी नींद के लिए अक्सर फटकार लगाते थे.  बात तब की है जब मैं सुबह नाश्ता करके सो जाती थी. एक घण्टे बाद उठती और फिर थोड़ी देर गप्पे मरती, थोड़ा पढ़ती, तब तक मम्मी दोपहर का खाना बना चुकी होती थीं. मैं थोड़ा बहुत हाँथ बटाकर, फटाफट खाना खाने में जुट जाती थी. अब खाना खाने के बाद इस जुगाड़ में रहती थी की कैसे दोपहर वाली नींद पूरी की जाये। ये दौर तब का है जब पापा को तवे से उतरी घी से सराबोर रोटी थाली में चाहिए होती थी।  खाना चूल्हे पर बनता था और गरमा-गरम थाली में पहुँचता था. ख़ासकर करके घर के मर्दों और मेहमानों के लिए. बाकि महिलाओं का क्या है. वो तो बाद में ही खाती थीं. पापा तब इटावा रहते थे और महीने में दो बार ही आते थे।  इस दौरान मम्मी की पूरी कोशिश होती हम लोगों के अलावा उनकी भी सारी फेवरेट चीज़े बनें। मगर मैं अपने धुन में रहती थी, खाना बनेगा तो सबसे भोग तो मैं ही लगाऊंगी। फिर चाहे वो नाश्ता हो या लंच या डिन्नर। मतलब भाई बहन स्कूल जाते थे।  उनकी स्कूल बस होती थी मगर नाश्ता पहले मैं करती थी।  चार पराठे खाकर ह...

#southindia - कुंदापुर के साफ सुथरे बीच

बैंगलोर से करीब 450 किमी की दूरी पर है कुंदापुर। हालांकि ये जगह मशहूर है मरवंते के लिए। दरअसल मरवंते बीच की जो फोटो गूगल पर नज़र आती वो बेहद आकर्षक है। एक तरफ स्वापर्निका नदी औ...

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