मीरा और मुंबई लोकल
मुंबई लोकल या मुंबई की लाइफ लाइन कह लो। जिस तरह इसे लाइफ लाइन कहते हैं यकीनन ये किसी लाइफ लाइन से कम नहीं है। चलती फिरती लाइफ और उसकी चुनौतियों से खचा-खच भरी होती है। जब तक मैं मुंबई में थी मुझे ना तब कार और कैब से चलने में मज़ा आता था और ना अब। अब तो और भी नहीं क्योंकि बैंगलोर में कोई और विकल्प ही नहीं है। यहां ट्रैफिक से ऊबने से बेहतर है इंसानों के बीच उनकी बातें सुनी जाए और कुछ सीखा जाए। फिलहाल टिकट तो फर्स्ट क्लास का लिया मगर हमेशा की तरह चढ़ी मैं सेकंड क्लास में ही। दरअसल जैसे-जैसे लोगों की पैसे का क्लास ऊपर उठता है। उनकी इंसानियत का दर्जा लोगों से मेल जोल, दिल खोलकर बात करने का ग्राफ नीचे गिरता जाता है। इसलिए सेकंड क्लास जहां बनावट और डर नहीं है। सबसे मज़ेदार लोकल सेकंड क्लास की शॉपिंग होती है। खैर आज अब एयरपोर्ट से निकली तो ट्रेन में मीरा से मुलाक़ात हुई। लोगों के घर में काम करती हैं मीरा मस्त और एकदम हरफन मौला, दिल खोल कर बात की मीरा ने। करीब अधेड़ उम्र की महिला मगर शादी को महज 12 साल ही हुए हैं। भीड़ ठीकठाक थी जैसे मैंने बैग ऊपर डाला चुपचाप फोन लेकर एक कोने में खड़ी हो गई।...