माँ क्यों तुम ही बस ऐसी हो?
माँ तुम क्यों ऐसी हो।
जीवन में सच्चे सपने के जैसी हो।।
आँखों के आंसू सूख गए हों भलेे।
तुम फिर भी उनको पहचानती हो।।
चुप रहकर भी तुमसे कुछ छुपा नही।
हर अनकही बात भी जानती हो।।
न होश सुबह का न ख़बर शाम की ।
तुम सदा समय सी चलती हो।।
घड़ी की टक टक रूकती है।
पर न तुम थकती न रूकती हो।।
माँ क्यों तुम ही बस ऐसी हो?
चेहरे पर सिकन जो हो मेरे।
माँ तुम मुस्कान बन जाती हो।।
चोट हो कितनी भी गहरी।
तुम मरहम बनकर आती हो।।
अब बीत गया बचपन मेरा।
ऐसा लोगोँ का कहना है।।
माँ आज भी जी करता है।
बस तेरी ही गोदी में रहना है।।
जीवन में सच्चे सपने के जैसी हो।।
आँखों के आंसू सूख गए हों भलेे।
तुम फिर भी उनको पहचानती हो।।
चुप रहकर भी तुमसे कुछ छुपा नही।
हर अनकही बात भी जानती हो।।
न होश सुबह का न ख़बर शाम की ।
तुम सदा समय सी चलती हो।।
घड़ी की टक टक रूकती है।
पर न तुम थकती न रूकती हो।।
माँ क्यों तुम ही बस ऐसी हो?
चेहरे पर सिकन जो हो मेरे।
माँ तुम मुस्कान बन जाती हो।।
चोट हो कितनी भी गहरी।
तुम मरहम बनकर आती हो।।
अब बीत गया बचपन मेरा।
ऐसा लोगोँ का कहना है।।
माँ आज भी जी करता है।
बस तेरी ही गोदी में रहना है।।
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