जीत कर हार गए पापा

रात के क़रीब एक बजे पूरे मोहल्ले में सन्नाटा अचानक प्रतिभा के पिता की तबियत बिगड़ जाती है। भाई और माँ के साथ आननफानन वो अस्पताल भागती है। डॉक्टर ने जब प्रतिभा के पिता को देखा तो कुछ जाँचे लिखी और रिपोर्ट देखने के बाद घर भेज दिया। दूसरे दिन सब ठीक था मगर अचानक एक दिन बाद सन्डे को हमेशा बोलने वाले प्रतिभा के पापा की आवाज़ बंद हो गयी। अपने पापा इस हालत में देखकर उसे जितना दुःख था।उतना ही वो पुराने वक़्त में खोती जा रही थी। उसकी पढाई और सपने को पंख पापा ने ही दिया था। आज दुनिया में अकेले चलने वाली प्रतिभा को अकेले और निडर होकर चलना उसके पापा ने सिखाया था। आज भी याद है गाँव में रहने वाली प्रतिभा महज़ तीन साल की होगी जब उसके पापा ने पहली बार उसे अकेले जीप में बिठा कर घर रवाना किया था। और खुद पीछे अकेले मोटरसाइकिल से आ रहे थे।ऐसा नही था की वो अपनी बेटी को साथ नही ले जाना चाहते थे। उनका मकसद सिर्फ ये था की उनकी बेटी किसी पर निभर्र न रहे।आज 30 की हो चुकी प्रतिभा के बचपन में बेटी को ये सीख देना उसके पिता के लिए भी आसान नही था .

वो उसे वो सब सीखाना चाहते थे जो लोग अपने बेटे को सीखाते हैं। प्रतिभा ने सीखा भी, अकेले मीलों का सफर तय करना और आधी रात में अकेले कहीं भी आना जाना। एकदम निर्भीक और मजबूत हो गयी वो अपने पिता के मनोबल से। मगर आज तो मानों दुनिया ही लुट रही थी।जो पापा हर मोड़ और नुक्कड़ का नाम बेटी को बताते हुए चलते थे ताकि उसे रास्ते याद रहें। आज वो ये नहीं बता पा रहे थे कि उनको तकलीफ क्या है। नर्स की आवाज आती है----दिनेश के साथ कौन है---खुद को संभालते हुए वो आईसीयू की ओर भागती है क्या---क्या हुआ सिस्टर ? प्रतिभा ने पूछा --नर्स ने कहा ये दवा और पांच यूनिट ब्लड तुरंत लाओ मरीज की हालत नाजुक है। अब तो सांसे और तेज हो गयी ,क्या हो गया आपको पापा? अब किसका सहारा लूं? ये सब सवाल उसके जेहन में आंधी की तरह चल रहे थे। खैर उसने फटाक से व्हाटस ब्लड डोनेट ग्रुप में अपडेट किया कि खून चाहिए और साथ ही फेसबुक पर भी। आनन-फानन में कई सारे लोगों की काॅल आयी फटाफट खून का इंतेजाम भी हो गया। मगर पापा की स्थिति जस की तस बनी थी। डाॅक्टर जवाब दे चुके थे कि उम्मीद महज दो प्रतिशत है। मां और भाई-बहनों को चेहरा देखकर वो रो भी नहीं पा रही थी। क्योंकि पापा ने सब उसके भरोसा छोड़ा है ये उसका मानना था। हमेशा जिस पापा ने बेटी को बडे़े बेटे की तरह पाला था वो इस वक्त वो हिम्मत कैसे हार सकती थी। पापा के बेड के हजारों चक्कर मारने के बाद भी उसे तसल्ली नही थी। कभी पापा का हाथ पकड़कर उनको महसूस करती तो कभी उनके सिर को सहला कर चली आती। दूसरे दिन उससे बेहतर इलाज के लिए बडे़ सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया । यहां भी वही हालत आखिर में आधी रात में डाॅक्टर ने बोल दिया कि कभी भी वेंटीलेटर पर डाला जा सकता है। करीब दो बजे रात में दिल से आवाज आयी कि प्रतिभा बेटा अब सब तुम संभालना ऐसा लगा मानो पापा सामने मुस्कुरा रहे हैं। उसे याद आ रहा था कि कैसे पापा बीए करने के लिए होटल में काम कर रहे थे। खुद को साबित करने के लिए गोदाम की पहरेदारी तक की, काफी संघर्ष के बाद उनको सरकारी नौकरी मिली थी। आज वो पापा अपने आप से हार गए थे। हर जंग जीतने वाले पापा जिंदगी की जंग हारने की कगार पर थे। क्यूं???? क्योंकि उन्होंने शराब से दोस्ती कर ली और इस कदर कर ली कि शराब उनकी जिंदगी को पीने लगी थी। पांच बच्चों में सिर्फ प्रतिभा का ही वो व्याह रचा पाए थे। महज 55 साल की उम्र वो जिंदगी की जंग हार गए क्योंकि शराब जीत चुकी थी। आज ये सारी बाते प्रतिभा के जेहन में है कि काश पापा ने शराब नही पी होती, काश पापा ने पहले ही छोड़ दिया होता है। तो शायद हमारा परिवार तबाह होने से बच पाता। पापा ने हमेशा जीतना सिखाया और खुद नशे से हार गए। इसका अफसोस मेरे पापा को भी होगा कि काश वो अगर इस आदत को हरा देते तो आज उनकी बेटी इतनी अकेली नहीं होती। 
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Best one

अब तो जागो