क्यों पतियों को सारी उम्मीद पत्नियों से
लोग चांद तक जा पहुंचे हैं। फिर हमारे आस-पास बहुत सी ऐसी चीजें और घटनाएं ऐसी होती हैं। जिनसे लगता है कि हम आज भी रुढिवादिता की ज़जीर में जकडे़ हुए हैं। बात जब पत्नी की जिम्मेदारियों को हो तो ये दायरा कुछ ज्यादा है बड़ा नज़र आता है। परिवार नौकरी और बच्चों की जिम्मेदारी सब कुछ औरत पर थोप दी जाती है। फिर वो चाहे या न चाहे सब कुछ उसे ही करना है।
घर की काम की उम्मीद
वो समय अब नहीं रहा कि औरते घर में बैठकर सिर्फ चूल्हा चैका ही करती हैं। किचन को छोड़कर उनकी भी अपनी दुनिया है। वे भी अब जाॅब करती हैं। हर क्षेत्र में उनका परचम है। है न, ये खुश होने वाली बात? मगर उनको इस बात की आज़ादी नही है कि वो घर आकर आराम करें। ओहदा उनका कोई भी हो , भले ही दुनिया उनको सलाम करती है मगर परिवार में आती है। किचन परिवार और जिम्मेदारियों का विणा उठाना पड़ता है। भले ही घर में नौकर-चाकर लगे हों।
बच्चों की चिंता
आॅफिस जब आप दोनों जाते हैं तो जाहिर है कि बच्चों की जिम्मेदारी भी आप दोनों की होनी चाहिए। हो भी क्यो न, आप लोगों के टीम वर्क से ही बच्चा दुनिया में आया है। ये बात तो सिर्फ कहने और सोचने और पढ़ने में अच्छी लगती हैं। असल जि़दंगी में इसका कोई सारोकार नही है। बच्चों की परवरिश की पूरी जिम्मेदारी मां पर ही होती है। चलिए मान लेते हैं कि पहले सिर्फ पुरुष ही नौकरीपेशा हुआ करते थे। तो उनके पास वक्त नहीं था मगर अब तो दोनों ही जाॅब पर जाते हैं। तब भी जिम्मेदारी सिर्फ मां पर क्यों? दोनों को मिलकर बच्चे की परवरिश करने चाहिए। ऐसे में अगर बच्चा बिगड़ जाता है तो सारा दोष मां ही होता है।
आर्थिक आजादी
पैसे वो भले ही कमा रही हो मगर खर्च का हिसाब देना जरूरी है। ये सिर्फ उनके लिए नहीं है तो कमा रही हैं। इसके अलावा जो महिलाएं नहीं कमाती हैं। उनको भी खर्च का हिसाब बहुतायत में देना ही पड़ता है। फिर चाहे वो खुद के लिए खर्च करें या अपने परिवार के लिए दोनों ही स्थिति में उनको ये बात सुननी पड़ती है कि आप फिजूल खर्च करती हैं। भले ही पत्नी पूरा दिन किचन परिवार और घर को बनाने में लगी रहे। अधिकतर घरों में उनको आर्थिक आज़ादी नहीं है। उनको उतना ही खर्च करने की इजाजत है जितने की उनको अनुमति मिली हो।
http://zenparent.in/parenting/kyu-patiyon-ko-sari-ummid-wife-se
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