ख्वाबों की चादर
ख्वाबों की जो चादर है कुछ मैली है, कुछ धुंधली है
कुछ धीमे-धीमे चलते हैं, कुछ हवा से बातें करते हैं।।
जब आंख खुली तो देखा, कुछ पास मिले कुछ दूर चले
सिरहाने का जो तकिया था, वो कब फूलों के जैसा था।।
जिस नुक्कड़ पर हम मिलते थे उसका अब नामों निशान नहीं
जिस घर का सपना देखा था अब उसका भी अरमान नहीं।।
कुछ चाय के प्याले बिखरे थे, कुछ प्लेटें टूटी-फूटी थीं
जिनके संग खेला था गुच्चू और खो-खो वो सखियां हमसे रूठी थीं।।
एक ठेले वाला होता था जो अपना सहारा होता था
कुछ कंपट बेचा करता था, कुछ चंपक देखा करता था।।
चंद पल में वो सब बीत गया, वो वक्त ही हमसे छूट गया
न साथ रहे अब वो साथी न साथ रहा अब वो सावन।।
जहां पेड़ पर लच्छी डाली खेली थी, और उसकी कलाई टूटी थी
मां भी हम पर चिल्लाई थीं, चाचा न करी पिटाई थी।।
वो पेड़ अब मोटा तगड़ा है वो भी हमसे अब अकड़ा है,
एक बार शिकायत की थी मुझसे, न छोड़कर हमको यूं जाना।।
ख्वाबों की बगिया खाली है, यादों की चादर भारी है
दीपा श्रीवास्तव
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