सच्चा और विश्वास का रिश्ता
कितना सच्चा
और विश्वास का रिश्ता होता है पति-पत्नी
शायद उतना ही जितना जीने के लिए पानी वैसे ही एक सुखद वैवाहिक
जीवन के लिए विश्वास
और सर्मपण भी बहुत जरूरी
है, , मगर जब वही साथ हमेशा
के लिए छूट जाए तो मालूम
पड़ता है कि अब दुनिया
खत्म हो गयी। कहते हैं मौत जीवन का कटु सत्य है और यही सच मेरे सामने
वाले मिश्रा अंकल के साथ हो गया। वो अपनी पत्नी
के से इतना प्रेम
करते हैं और करते थे हर महिला
यही चाहेगी कि उसका पति या प्रेमी
उसे उतना ही प्यार करे और सम्मान
दे। करीब चार साल पहले जब हम लोग राजधानी
में बसे तो चंद महीने
तक ही मिश्रा आंटी ठीक थी अचानक
से उनकी तबीयत खराब हुई और लाख इलाज के बावजूद
वो बिस्तर नहीं छोड़ सकी आखिरकार
30 जनवरी को वो मौत से हार गयीं।
परिवार में एक बेटी और एक ही बेटा है बेटी जोकि नाबालिग
है फिर भी उसकी शादी कर दी गयी क्योंकि
परिवार का खर्च रिक्शा
चलाकर पूरा नहीं किया जा सकता है,, ऐसे में हर बाप यही सोचता
है अच्छा रिश्ता मिले तो बेटी को निपटा
दें। मिश्रा अंकल का प्यार
और निश्ठा का अंदाजा इसी से लगाया
जा सकता है कि पिछले
चार साल से आंटी बिस्तर
से नहीं उठी इतना ही नहीं,
न तो वो खुद से खा सकती थी और नहीं टॉयलट
जा सकती थीं परिवार
की माली हालत बदतर होने के नाते मिश्रा
जी रोज सुबह ठेले से सब्जी
मंडी जाते हैं और वहां से मजदूरी
का जुगाड़ करते हैं। सुबह मंडी जाने के पहले पांच बजे ही बीवी को चाय नाश्ता
कराकर ही जाते हैं। दोपहर
में वापस आने के बाद खाना बनाना
पत्नी को नहलाना और इसके अलावा
उनके टॉयलट को साफ करना ये उनकी दिनचर्या है। इतनी मेहनत
के बाद भी कभी वो न तो अपनी पत्नी
को गाली देते मिले और न ही उपेक्षित हुए कि ये मर जाए तो उन्हें
मुक्ति मिले। कभी-कभी आंटी उनको गाली भी देती थी। ऐसे में शायद कोई और पति होता तो वो पत्नी
को मायके छोड़ देता मगर जब उनके मायके
वाले आए तो उन्होंने भेजने
से इंकार कर दिया कहा कि मैं जब तक जिंदा
हूं बिटृटी का ख्याल मैं ही रखूंगा।
उसके बाद मिश्रा जी के ससुराल
के लोग यहां तक उनकी सास अपनी बेटी की लाश भी देखने
नहीं आयीं।
सोमवार को शाम को मैं और भाइ्रे
घर से निकलने वाले ही थे कि
अचानक उन्होंने बेल बजायी
और बहन ने पूछा क्या हुआ अंकल वो फफक कर रो पडे़ कहा बिटिया
आरती की मम्मी कुछ बोल नहीं रही हैं
बड़़ी बिटिया को बुलाओ,
मुझे देखते ही वो जोर-जोर से रो पडे़ कहा बिटिया
अपनी आंटी को उठाओ मैंने
कहा अंकल परेशान मत होइए वो फिर बेहोश
हो गयी होगी चलिए देखते
हैं। अंदर गए तो देखा हमेशा
कि तरह वो आज भी अर्धनग्न अवस्था में लेटी हुई थी ऐसा बिल्कुल
नहीं था कि मिश्रा अंकल उनको इस तरह रखते थे वह चल नहीं पाती थी मगर बिस्तर
पर लेटे-लेटे ही खुद से ही कपड़े नोचने
लगती या फेंक देती थी। शायद बीमारी
की वजह से विक्षिप्त भी हो चुकी थी तभी किसी की भी आवाज सुनकर
आनायास ही गाली भी देती थी। हां मुझे देखकर
वो ये जस्र कहती माता जी आयीं है इनकी आंख मैं ले लूंगी।
खैर वो सांस नहीं ले रही थी और उनको देखकर
बिल्कुल यकीन नहीं हुआ कि वो दुनिया
छोड़ चुकी हैं। मुझे ऐसा लगा अभी बेहोश
है मैंने पानी के छीटें
मारे हरपल सेकेंड मुझे यही लगा कि अभी उठेंगी
और मेरी आंखें लेने की बात कहेंगी।
उनकी इस हरकत से मुझे कभी-कभी डर भी लगता था मगर फिर दया आती थी। पूरे चार साल के कष्ट के बाद ईश्वर
ने उनकों मुक्ति दे दी। ये अलग बात है कि मिश्रा
अंकल दिन रात उनके लिए रोते हैं क्योंकि
अमीरों का तो हर कोई होता है मगर रिक्शा
चलाने वाले गरीब का साथ कोई नहीं देना चाहता।
उनके बारे में लिखकर
अच्छा लग रहा कि कम से कम दुनिया
में ऐसे लोग हैं जो औरत की इज्जत
करते हैं उसे बेपनाह
प्यार करते हैं।
दीपा श्रीवास्तव
Comments