महाप्रलय की कोरी कल्पना
नया साल की शुरूआत हुई तो पहले बारिश ने रंग में भंग डाला इसके बाद भी जब कुछ सेलीब्रेशन का मौका आया तो कहीं से अफवाह आ गयी कि भूकंप आने वाला है। इतना ही नहीं ये भी खबर आयी कि जो लोग सो रहे हैं वो पत्थर के हो जाएंगे। एक दिन पहले ही नासा के अनुसार महाप्रलय एक झूठी अफवाह साबित हुआ था मगर ये खबर हर किसी के दिल धडकन बढाने के लिए काफी रही; सुनने में अजीब लगा मगर लोगों की दशहत और शोरगुल के बीच आंख खुल ही गयी। टेरिस पर जाकर मालूम चला कि कहीं चोर आए हैं इसके बाद मजिस्द में अनाउंसमेंट हुआ कि सोने वाले जाग जाए वरना वो पत्थर के हो जाएंगे। इन में वो लोग भी शामिल थे जो मोहल्ले में वेल एजुकेटेड हैं और जो भी जो इललिटरेट हैं दोनों ही बेहद परेशान दिखे कोई फोन पर बच्चों का हाल जान रहा था तो कोइ्र रिश्तेदारों को जगा रहा था। मतलब जो भी अपनो से दूर थे वो उन्हें हर तरह से सूचना देने में लगे थे कि कहीं वो पत्थर न हो जाएं। लोगों से जब मैंने पूछा कि किसी का जानने वाला पत्थर हुआ तो हर किसी का जवाब न ही था। फिर लोग सुनी सुनाई बातों पर यकीन किए जा रहा थे। कुछ लोग तो ऐसे भी मिले जो पूरी रात जगे और घर से बाहर ही बैठे रह गए। शाम को जब ऑफिस आए तो मालूम चला जितने जिले मेरे दायरे में हैं उन सब जगह से ये खबर आयी। चाहे वो इलाहाबाद,गोंडा से लेकर जौनपुर और सीतापुर तक इन सब जगहों की खबरों में इस अफवाह की खबर शामिल रही । कुछ लोगों का तीन बजे रात में फोन भी आ गया कि मीडिया मैं हूं तो मुझे जरूर मालूम होगा कि ये अफवाह है कि सच। शायद उनको ये अंदाजा नहीं था कि मीडिया के लोग तो वैसे ही पत्थर होते हैं उन्हें पत्थर बनने की जरूरत क्या है शायद इन्ही सब वजह से फोन करने वालों को मैंने यही जवाब दिया कि अगर पत्थर सच में लोग बन रहे हैं तो मीडिया को कोई छूट नहीं मिलेगा, इसलिए खुद भी सोएं और हमें भी सोने दें वैसे भी नींद मेरे लिए सबसे प्रिय है तो उससे तो समझौता हो ही नहीं सकता। बहरहाल ऑफिस आके देखा तो मालूम चला कि जिले रिर्पोटर भी इस खबर को हाथ से जाने नहीं देना चाह रहे थे उन्होंने बाकायदा लोगों की रात में जगने की फोटो भी ले ली। कुछ बेचारे आम इंसान के हाथ में हनुमान चलीसा नजर आई तो किसी के हाथ में रूद्राक्ष की माला। खैर हो कुछ भी मगर हमारे समाज में पढे लिखे बेवकूफों की कमी नहीं है।
दीपा
Comments