आपका साथ अनमोल है
घर जाने की खुशी उस समय और ज्यादा महसूस होती है जब आप परिवार से दूर रह रहे हों। इन अनुभव की मैं खुद गवाह हूं जिंदगी का एक पूरा साल अपने भाई बहनों से दूर रहने का कटु अनुभव है। तो उनका दर्द बखूबी समझ में आता है जो इस दीपावली अपने परिवार के साथ नहीं रहेंगे। खैर अभी भी मम्मी पापा से कोसों दूर हूं और हर दीपावली उनके बिना ही मनानी पड़ती है मगर ज्यादा तकलीफ नहीं होती है क्योंकि उस दिन मेरा छोटा भाई या बहन मेरे साथ होते हैं। आज एक ऐसे आदमी को देखा जो परिवार की जीविका चलाने के लिए परिवार से दूर है और इस त्यौहार में घर जाने के लिए काफी खुश भी थे मगर जब अपने मालिक से छुटृटी मांगने गये तो उन्होंने इनकार कर दिया। परिवार में बूढ़ी मां, छोटा सा बेटा और बीवी इन सबको इस व्यक्ति के घर आने का जितना इंतजार है उससे कहीं ज्यादा इनको अपने परिवार के साथ ये खुशियों भरा पल बीताने का। मगर कहते हैं न , नौकरी है ही ऐसी चीज जो कभी न कभी परिवार से दूर करती जरूर है। बहरहाल घर जाने के लिए यह व्यक्ति अपने वीक ऑफ में भी काम करता है ताकि दो सप्ताह बाद दो दिन के परिवार के साथ रह सकें । मैं भी दैनिक भास्कर में यही किया करती थी पूरे महीने काम करती थी और महीने के सारे ऑफ एक साथ लेकर घर आना मेरी आदत थी।
कुछ महीने तो सब ठीक था मगर फरवरी में वहां भी रवैया बदल गया ऐसा नहीं था कि इससे मेरे संपादक को दिक्कत थी मगर मेरे साथी दोस्तों को मेरी छुटृटी से परेशानी होती है। खासकर उनको जिन्हें मेरा रिलीवर बनाया गया था अब इतनी मंहगाई में अपनी बीट तो संभलती नही ऐसे में दीपा श्रीवास्तव की बीट की रिर्पोटिंग कंगाली में आटा गिला जैसा हो गया था। खैर जनवरी की छुटृटी के बाद मुझे अल्टीमेटम मिल गया कि अब आपको अपना ऑफ लेना है सारे ऑफ एक साथ नहीं मिलेंगे , इसके अलावा न हर महीने घर जाने की छुटृटी मिलेगी। सच कहती हूं जिस दिन मीटिंग में ये बात हुई मैंने अनायास ही कह दिया ऐसे में मैं ज्यादा दिन काम नहीं कर सकूंगी। क्योंकि होम सिक्नेस मेरी लिए मुसीबत है। खैर मीटिंग के बाद न तो मैं अपनी बीट में जा सकी न ठीक से काम कर सकी क्योंकि खबरें ही नहीं थी ज्यादा। नाना के पास जाकर जी भर कर रोये और सामने रखे साईं बाबा से यही प्रार्थना की कि कभी किसी को उसके परिवार से दूर रहकर न रहना पड़े। उस दौरान मेरे अजीब दोस्त का जो हर घंटे फोन करता था उसने भी मेरा हाल जानना चाहा , बहरहाल उसके सामने भी मैं रो पड़ी कि कैसे बिना घर आए हम रहेंगे। मैं तो यहां काम नहीं कर सकती । उसके दूसरे दि नही दैनिक जागरण से कॉल आ गई और मैंने मार्च में जागरण गु्रप ज्वाइन कर लिया। इस तरह अपने परिवार के पास और साथ आ गयी। मगर आज इन सज्जन की हालत बिल्कुल मेरी तरह ही लग रही हैं। दिन रात इंसान जी तोड़कर इसलिए ही मेहनत करता है ताकि वो अपने परिवार को खुश रखे मगर कई बार मजबूरियां हमें ऐसा नहीं करने देती। आज फिर मैं ईश्वर से यहीं प्रार्थना करती हूं कि किसी को उसके परिवार या प्यार करने वाले दूर न रखे। सच में आंखे और दिल दोनों से आंसू निकलते हैं।
दीपा श्रीवास्तव
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