देने का सुख कहते है हर दिन कुछ न कुछ नयी सीख लेकर आता है. चाहे वो अपने छोटे से हो या बड़े पर रोजाना कुछ जरूर मिलता है. मुझे ये लगता पिछले कुछ दिनों में बहुत कुछ बदल गया. ऐसा लगता था सबके लिए मै हूँ पर मेरे लिए सिर्फ जिम्मेदारिय है. वो आज भी है पर बंदिश नही है. वैसे भी ये सफ्ताह देने का है "देने का सुख" मैंने भी दिया एक माँ को उसकी बेटी,एक लड़की को उसकी उसकी इज्जत, एक भाई को उसकी बहेन और खुद को समय .जो की बहुत जरुरी था मेरे लिए. लोगो को भुला कर जीना मुश्किल होता है.पर नामुमकिन नहीं आज ये बात मुझे पता चली अब मेरे पास खुद को अपडेट करने लिए समय है. किसी को मदद करने के लिए समय है. आज बहुत अच्छा लगा जब किसी क एक काल पर मै बिना डरे बिना किसी से पूछे उसकी मदद के लिए गयी.वो एक औरत थी जिसे कुछ पैसो और प्यार की जरुरत थी. लोग उसे मरने को उतावले थे ऐसा लग रहा था की मुझे ही मर देंगे.लेकिन मै नहीं डरी. अब वो भी ठीक है और मै भी. किसी ने ठीक ही लिखा जब आप किसी को प्यार करते हो तो उसे सारा समय देते हो. और खुश होते हो.क्युकी आपने किसी को कुछ दिया इसलिए आप खुश होत...
Posts
Showing posts from September, 2010
- Get link
- X
- Other Apps
सफर .......... जिन्दगी का एक समय वो था जब एक लड़की अपने पेपर देने के लिए भी घर से दूर नहीं जाना चाहती थी.कहीं भी जाना हो माँ को होना जरुरी है. फिर चाहे वो पेपर देना हो या कहीं रिश्तेदारों के घर जाना हो.अगर मम्मी है तो जाना है वरना नहीं.बचपन से आखों में एक सपना था की कुछ करना है कुछ बनना है मगर घर से दूर रह कर नहीं.उसे क्या पता था की दुनिया की रेस में आगे निकलना है तो माँ घर परिवार सबसे दौर जाना होगा.बात तब की है जब उसे स्नातक की परीक्षा के पहली बार माँ को छोड़ कर जाना पड़ा एक महिना पहले से ही रोना धोना शुरू, खाना पानी बंद जैसे माँ कहे बेटा रोते नहीं थोड़े दिन की बात है फिर वापिस आ जाओगी .लेकिन उसका एक ही जवाब रहेंगे? अब इस पर माँ बेटी दोनों का विलाप शुरू हो जाता.वहीँ पापा मजा लेते की ये शादी करके कैसे जियेगी.उसका भी जवाब हाज़िर था.लड़की कहती मुझे नहीं करनी शादी अगर करोगे तो आप और मम्मी जाओगे "मै नहीं".किसी तरह ये सारा समय बीत गया मगर माँ से दौर रहने की आदत नहीं सीखी.मगर आज वही लड़की घर हजारो किलो मीटर दूर अपने परिवार से माँ अलग है.क्युकी अब बचपना नहीं रहा.साथ ह...
- Get link
- X
- Other Apps
गणपति बप्पा मोरया, हमने तुमको छोड़ दिया गणेश चतुर्थी श्रद्धा और आस्था, पूजा अर्चना के बाद दुखी मन से विसर्जन. हम वापस अपने घर और हमारे देवता ! अब न श्रद्धा दिख रही है न विश्वास.और गणपति हो गए कूड़ा. अगर कोई वैसे हमारे इश्वर को छु ले तो बवाल मगर आज सब शांत है. क्या ये हमे शोभा देता है.एक बार हम जी भगवन की पूजा करते उन्ही को फेंक देते है.क्या यही आस्था है.