मत कीजिये ऐसा कितना अजीब सा लगता है.जिन बच्चो को माँ बाप इतने प्यार और दुःख दर्द से पलते है. उनको अपने हांथो से ही मार देते है.जो माँ अपने जिगर के टुकड़े के लिए रात-रात भर जगती है;उसे भूख से तडपता नहीं देख पाती है.उसी की छोटी सी ख़ुशी के लिए उसका गला घोट कर मार देती है,क्युकी जिदगी का सबसे अहम् फैसला वो खुद से कर लेते है. क्या ये ठीक है? जब आप अपने बच्चे को मर्जी का खाने की इजाजत देते है.कपडे पहनने की इजाजत देते है तो शादी मर्जी की क्यों नहीं? क्या अपनी मर्जी से जीवनसाथी चुनना गुनाह है.निरुपमा ने ऐसा कोई काम नहीं किया था की उसे उसकी जान गवानी पड़े.अरे जिसकी हम पूजा करते है उस भगवान ने भी तो प्रेम किया था.उसे जब हम पूजते है तो इन्सान को मार क्यों दिया जाता है.हर जन्माष्टमी में कान्हा के जन्म होने तक लोग जागते रहते है.कहते है आज भगवान का जन्म होगा. रात दिन पूजा करते है.कान्हा ने भी तो प्रेम किया था उन्हें कोई क्यों नहीं ठुकराता है.उसकी तो हर माँ बाप पूजा करते है.मगर जब वही प्रेम उनके बच्चे को होता है तो जात-पात सब देखा जाता है.क्या ये ठ
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गुलमोहर एक दौर था जब बागो में कोयल की कु कु होती थी; तपती धूप में जब हम उन बागों में घूमा करते थे, आम के पेंड़ से हम टिकोरे तोड़ा करते थे, वो लू के थपेड़ो में धमा चोकड़ी भरना, डाली- डाली पर कूद कूद कर खेलना, जब कल देखा कुछ बच्चो को आंधी में, वो बीन रहे थे फूल गुलमोहर के, तेज हवाएं बहती थी, रहता था आंधी का इंतजार, डाली हिलती थी हम दौड़ते थे, पेंड़ो के नीचे कब टपकेगा वो, हम निहारते सब पेड़ो को, अब गांव नहीं है न बचपन है, न ही आमो की डाली है, गली में एक पेंड़ गुलमोहर का, जिसके फूल बीनते बच्चे है, दीपा