ये है आज के आशिक हर रोज एक ख्वाब जो आता, जो हर इस दिल को बहका जाता है, बस इंतजार है उस पल जब, इन आखों के सामने तुम होगे, बस एक तमन्ना उस दिन की, जिस दिन ये जज्बात बयाँ होगे, अब दूर नहीं वो पलछिन है, अब दूर नहीं वो दिन है, उस पल का इंतजार सबको है, आसन बहुत है कह देना, हम तुम पर मरते है, तेरे संग ही जीना मरना है, पर वक़्त बदलता जैसे है, सब वादे टूट से जाते है, जो कसमे हमसे खायी थी, अब और किसी से कहते है, ऐसे ही कुछ लोग है प्रेम को, झूठा बनते है,
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Showing posts from January, 2010
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कितने बेरहम इंसान कितनी अजीब बात है जब हम घर से निकलते है तो एक ही बात दिमाग में होती है की हमें अपना काम पूरा करना है.ऐसा ही कुछ मै भी निकली १३/०१/२०१० को.किसे पता रास्ते में क्या होगा. घर से महज चार किलो मीटर की दुरी पर जाके मेरा एक्सिडेंट हो गया.वो भी कुछ इस तरह की, मै सही दिशा में जा रही थी.पर रास्ते में ताड़ीखाने(सीतापुर रोड) पर उलटे दिशा में आती हुई मारुती ओमनी (उप ३२सी एल ७२६४)सामने से आके मुझे ठोकर मारी. ठोकर इनती जबरदस्त थी की मेरी स्कूटी पूरी तरह सामने से क्षतिग्रस्त हो गयी.ऊपर वाले की दया से मुझे मामूली चोट आई.इतने में सरदार जी का बेटा जो उस मारुती को चला रहा था. उसमे शायद उनकी पूरी फैमली थी.वह भागने की कोशिश करने लगा.मगर मै उसकी गाड़ी के सामने थी जाता कहाँ? जैसे मैंने उसकी खिड़की पास जाके उसकी कॉलर पकड़ी वो जनाब नीचे आ गए.अब बाकि लोग जो उसमे ओरत बोली.बेटा मै आपके साथ हूँ आप क्या कहते हो? मेरा सीधा जवाब मेरी स्कूटी बनवा दो और जाओ.महिला बोली हम बनवायेगे आपकी स्कूटी (मगर वो सिर्फ कह ही रही थी) ये तो एक बात हुई. आगे मोहतरमा कहती है गाड़ी के मालिक आ जाये वो ही बनवा देंग...
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बचपन कितनासुहाना आज फिर उस वक़्त की याद आई जब होती थी सिर्फ मस्ती और होती थी अपनों से लडाई, वो दौर था बचपन का और शैतानी होती थी, हमारी दिन भर की कमाई जरा सा ख्यालो में खोये तो सब कुछ पास था, वो बचपन का मंजर और कुछ सपनो का साथ था, हर बार सुबह रोते हुए स्कूल जाने की आदत, पर हँसते हुए लौट आने की आदत, ठंडक में सर्द पानी से नहाने से फुर्सत, कहीं आने और जाने से फुर्सत न फ़िक्र थी आगे जाने की, न होश था कुछ कर दिखाने का,बस जज्बा था सब कुछ बन जाने का, आज फिर उस वक़्त की याद आई. दीपा