ab aaja beta
आजा लौट करके ये दिल कह रहा है
जब तलक चाहा साथ रखा जब चाहा ठुकरा दिया,
हर त्याग हर समर्पण को एक पल में ही भुला दिया,
कल तक उनकी ऊँगली का सहारा था अब पंख निकल आये अपने,
वो नन्हा मुन्हा कहते थे पाले जाने कितने सपने,
पर फ़िक्र ही किया जो उनने किया,
बस कुछ राते ही जागे है संग संग अपने रोये है,
हम हँसते तो तो हँसते थे हम सोये तो सोये थे,
गर इतना किया तो क्या किया,??
आज हड्डी जर्जर है उनको भी अपनी जरुरत है,
कोई यहाँ गया कोई वहां गया उनके लिए किसको फुर्सत है,
दो जून की रोटी मुश्किल है जब ताकत उनकी ख़त्म हुई,
हर रोज मिलने को तरसते है जिनकी खातिर सपने देखे,
उम्मीद सुबह में होती है शायद वो मिलने आ जाये,
कतरा-कतरा पाला जिसको वो हमको भी संग ले जाये,
पर साँझ का सूरज आता है बंद हो जाती है पथराई आँखे,
उनको आने की सुध ही कहाँ जो चले गए वादा करके,
ये दर्द है हमे दुनिया में लाने वालो का जिनको हमने तन्हा छोड़ा,
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