अब तो जागो

अब तो जागो
  जब बात चली तन्हाई की हर शख्स जुबा से ये बोला है ,
कहने को तो हर कोई है पर कौन  कहाँ पर कब बोला है ,
एक तनहा बूढी माँ भी है और तनहा उसके बच्चे भी,
पर किसे खबर उनकी तकलीफों की,
क्या हुआ जो कुछ जन शहीद हुए,

क्या हुआ जो बीबी बेवा है,
उनका तो मकसद हल ही हुआ जिनका मकसद सिर्फ पैसा है.
हर साल हमे तड़पायेगी क़ुरबानी उन जवानों की,
पर फिर भी हमको सहना है दर्द ऐसी क़ुरबानी की,
कब उजड़ेगा ये अपने घर से इंतजार इसी का हर पल है,

खौफ  का पहरा बैठा है "आंतक" कहाँ से रुखसत है
अब  तो जागो सब साथ चलो कब ये तमाशा देखोगे?
महफूज करो अपनी धरती को इसने ही हमको पाला है,
अब जागो सब साथ चलो कब ये तमाशा देखोगे ?
                     दीपा srivastava

Comments

Journo? said…
wow that was good!
पंकज said…
ज़रूर सब कुछ ऐसा ही है, पर सच ये भी है
अब आदत सी हो गयी है, आतंक परिवार हो गया है.

बेहद भावपूर्ण रचना जो हमें झकझोर देती है.

http://epankajsharma.blogspot.com/
Sambhav said…
आतंक का भयाभय चेहरा दिखाया आपने, शब्दों से भी, चित्रों से भी.

http://esambhav.blogspot.com

Best one