आम का मौसम
खट्टे मीठे स्वाद से भर पूर आम का मौसम जाने को है पर मौसम कोई भी आम का नाम आते ही मुंह में पानी आ जाता है। मगर आम का मौसम जारहा है तो क्या हुआ आएगा जरुर वापिस।
इसलिए तो हम बता रहे है कैसे करे आम की खेती और आम की बागवानी।आम की खेती के लिए यही मोसम सही होता जब आम के फल ख़म होते है तो आम के पौधे लगाने का समय शुरू होता है वैसे तो आम स्वाद का बखान हमारे देश में नही बल्कि विदेशो में भी है।आम भले ही हिन्दुस्तानी फल है मगर विदेश में इसकी अच्छी मांग है होगी भी क्यों नही फलो का raaja जो है ।भारत का खास फल होना होना हो इसका बेह्तिरीन स्वाद वजह कोई भी गर्मी के मौसम में ये हर हिन्दुस्तानी की थाली की शोभा है इस मौसम में हर घर में आम जरुर मिलेगा।ग्रंथो से लेकर पुराणों तक हर जगह इसकी गुण का बखान मिलता है ।
आम का इतिहास भी कम नही
१६७३ में यूरोप यात्री फ्रायर ने आम का स्वाद लिया और कसीदा ही कह डाला की इसने यूरोप के आडू ,खुबानी, सबके स्वाद भुला दिए,
बोद्ध जातको में बुद्ध द्वारा अपने प्रशंसक की आमराई में विश्राम करने के बाद जब उन्होंने अपने हाथ धुले और जहाँ जहाँ पानी छिड़का कालान्तर में वहां सफेद आम उग आया।
वैज्ञानिक के अनुसार
खट्टे मीठे स्वाद से भर पूर आम का मौसम जाने को है पर मौसम कोई भी आम का नाम आते ही मुंह में पानी आ जाता है। मगर आम का मौसम जारहा है तो क्या हुआ आएगा जरुर वापिस।
इसलिए तो हम बता रहे है कैसे करे आम की खेती और आम की बागवानी।आम की खेती के लिए यही मोसम सही होता जब आम के फल ख़म होते है तो आम के पौधे लगाने का समय शुरू होता है वैसे तो आम स्वाद का बखान हमारे देश में नही बल्कि विदेशो में भी है।आम भले ही हिन्दुस्तानी फल है मगर विदेश में इसकी अच्छी मांग है होगी भी क्यों नही फलो का raaja जो है ।भारत का खास फल होना होना हो इसका बेह्तिरीन स्वाद वजह कोई भी गर्मी के मौसम में ये हर हिन्दुस्तानी की थाली की शोभा है इस मौसम में हर घर में आम जरुर मिलेगा।ग्रंथो से लेकर पुराणों तक हर जगह इसकी गुण का बखान मिलता है ।
आम का इतिहास भी कम नही
१६७३ में यूरोप यात्री फ्रायर ने आम का स्वाद लिया और कसीदा ही कह डाला की इसने यूरोप के आडू ,खुबानी, सबके स्वाद भुला दिए,
बोद्ध जातको में बुद्ध द्वारा अपने प्रशंसक की आमराई में विश्राम करने के बाद जब उन्होंने अपने हाथ धुले और जहाँ जहाँ पानी छिड़का कालान्तर में वहां सफेद आम उग आया।
वैज्ञानिक के अनुसार
खट्टे मीठे स्वाद से भर पूर आम का मौसम जाने को है पर मौसम कोई भी आम का नाम आते ही मुंह में पानी आ जाता है। मगर आम का मौसम जारहा है तो क्या हुआ आएगा जरुर वापिस।
इसलिए तो हम बता रहे है कैसे करे आम की खेती और आम की बागवानी।आम की खेती के लिए यही मोसम सही होता जब आम के फल ख़म होते है तो आम के पौधे लगाने का समय शुरू होता है वैसे तो आम स्वाद का बखान हमारे देश में नही बल्कि विदेशो में भी है।आम भले ही हिन्दुस्तानी फल है मगर विदेश में इसकी अच्छी मांग है होगी भी क्यों नही फलो का raaja जो है ।भारत का खास फल होना होना हो इसका बेह्तिरीन स्वाद वजह कोई भी गर्मी के मौसम में ये हर हिन्दुस्तानी की थाली की शोभा है इस मौसम में हर घर में आम जरुर मिलेगा।ग्रंथो से लेकर पुराणों तक हर जगह इसकी गुण का बखान मिलता है ।
आम का इतिहास भी कम नही
१६७३ में यूरोप यात्री फ्रायर ने आम का स्वाद लिया और कसीदा ही कह डाला की इसने यूरोप के आडू ,खुबानी, सबके स्वाद भुला दिए,
बोद्ध जातको में बुद्ध द्वारा अपने प्रशंसक की आमराई में विश्राम करने के बाद जब उन्होंने अपने हाथ धुले और जहाँ जहाँ पानी छिड़का कालान्तर में वहां सफेद आम उग आया।
वैज्ञानिक के अनुसार
विज्ञानं के दिन प्रतिन अग्रसर होने का ही नतीजा है की कुछ वैज्ञानिक कहते है की आम भारत बर्मा के सीमावर्ती उत्तर पूर्वी क्षेत्र का है इसे किसी फल प्रेमी द्वारा अलग रूपा गया।आज भी सीमावर्ती क्षेत्र में आम्रतकनाम से आम की जंगली किस्म पाई जाती है जिसका लातिन नाम है पियांतो है
आम के नाम अनेक
आम को लोग इंग्लिश में मौंगो कहते है पर जरा सोचो इसका ये नाम किसने रखा आम का मौंगो नाम तमिल से निलका जबकि तमिल अब भी इसे मंगाया मनकाई खा जाता है १५१० में एक पुर्तगाली वारथेमा ने दक्षिण भारत में इसे चखा तो इसका ये नाम उधारले गया और आम महोदय मंगा से मेंगो हो गए।
कैसे होती खेती और कब होते है पौधे तैयार
आम ऐसा फल है जिसकी गुठली kahin भी फेकं दी जाए तो ये उग आते है मगर अच्छी उपज के लिए कलम लगायी जाती है
कैसे लगती है कलम
एक बीज को जमीन में गाड़दिया जाता है और निकलने वाले पौधे को मदर प्लांट कहते है और इसे एक साल बाद गिरा दिया जाता है । फिर इसी पौधे के निचे दूसरा बीज डाला जाता है और उससे निकले वाले पौधे और मदर प्लांट की टहनी को सटा के बाँध देते है ।इस तरह इसकी कलम तेयार होती है विज्ञानं के दिन प्रतिन अग्रसर होने का ही नतीजा है की कुछ वैज्ञानिक कहते है की आम भारत बर्मा के सीमावर्ती उत्तर पूर्वी क्षेत्र का है इसे किसी फल प्रेमी द्वारा अलग रूपा गया।आज भी सीमावर्ती क्षेत्र में आम्रतकनाम से आम की जंगली किस्म पाई जाती है जिसका लातिन नाम है पियांतो है
आम के नाम अनेक
आम को लोग इंग्लिश में मौंगो कहते है पर जरा सोचो इसका ये नाम किसने रखा आम का मौंगो नाम तमिल से निलका जबकि तमिल अब भी इसे मंगाया मनकाई खा जाता है १५१० में एक पुर्तगाली वारथेमा ने दक्षिण भारत में इसे चखा तो इसका ये नाम उधारले गया और आम महोदय मंगा से मेंगो हो गए।
कैसे होती खेती और कब होते है पौधे तैयार
आम ऐसा फल है जिसकी गुठली kahin भी फेकं दी जाए तो ये उग आते है मगर अच्छी उपज के लिए कलम लगायी जाती है
कैसे लगती है कलम
एक बीज को जमीन में गाड़दिया जाता है और निकलने वाले पौधे को मदर प्लांट कहते है और इसे एक साल बाद गिरा दिया जाता है । फिर इसी पौधे के निचे दूसरा बीज डाला जाता है और उससे निकले वाले पौधे और मदर प्लांट की टहनी को सटा के बाँध देते है ।इस तरह इसकी कलम तेयार होती है विज्ञानं के दिन प्रतिन अग्रसर होने का ही नतीजा है की कुछ वैज्ञानिक कहते है की आम भारत बर्मा के सीमावर्ती उत्तर पूर्वी क्षेत्र का है इसे किसी फल प्रेमी द्वारा अलग रूपा गया।आज भी सीमावर्ती क्षेत्र में आम्रतकनाम से आम की जंगली किस्म पाई जाती है जिसका लातिन नाम है पियांतो है
आम के नाम अनेक
आम को लोग इंग्लिश में मौंगो कहते है पर जरा सोचो इसका ये नाम किसने रखा आम का मौंगो नाम तमिल से निलका जबकि तमिल अब भी इसे मंगाया मनकाई खा जाता है १५१० में एक पुर्तगाली वारथेमा ने दक्षिण भारत में इसे चखा तो इसका ये नाम उधारले गया और आम महोदय मंगा से मेंगो हो गए।
कैसे होती खेती और कब होते है पौधे तैयार
आम ऐसा फल है जिसकी गुठली kahin भी फेकं दी जाए तो ये उग आते है मगर अच्छी उपज के लिए कलम लगायी जाती है
कैसे लगती है कलम
एक बीज को जमीन में गाड़दिया जाता है और निकलने वाले पौधे को मदर प्लांट कहते है और इसे एक साल बाद गिरा दिया जाता है । फिर इसी पौधे के निचे दूसरा बीज डाला जाता है और उससे निकले वाले पौधे और मदर प्लांट की टहनी को सटा के बाँध देते है ।इस तरह इसकी कलम तेयार होती है इसमे गोबर की खाद नियमित रूप से देनी चहिये।इस तरह से पौधे में दो साल में ही फल आने लगते है मगर पॉँच साल के पहले फल नही लेना चाइयेइससे पौधे कमजोर हो जाते है ।
कहाँ मिलती है खास नर्सरी
मलीहाबादी आम हर कोई जानता है जितना वो आम के फल के लिए मशहूर है उतना ही आम की नर्सरी के लिए भी हम बताते है कैसे।यह एक ऐसी जगह है जहाँ से पुणे से लेकर पंजाब तक आम के पौधे भेजे जाते है और यही निवासी कलीमुल्लाह जिन्होंने आम की फसल से ही पदम्श्री पुरस्कार भी हासिल किया और आम की कई ऐसी प्रजाति तेयार की दुर्लभ है।इन्ही की बनाई हुई एक प्रजाति है , इन्होने आठ साल पहले तेयार किया है इसकी खासियत ये है की इसके छिलके दो रंग के है, गुदे दो रंग के है , खुशबु दो तरह की और तो और इसका स्वाद भी दो तरह कई है। इसमे गोबर की खाद नियमित रूप से देनी चहिये।इस तरह से पौधे में दो साल में ही फल आने लगते है मगर पॉँच साल के पहले फल नही लेना चाइयेइससे पौधे कमजोर हो जाते है ।
कहाँ मिलती है खास नर्सरी
मलीहाबादी आम हर कोई जानता है जितना वो आम के फल के लिए मशहूर है उतना ही आम की नर्सरी के लिए भी हम बताते है कैसे।यह एक ऐसी जगह है जहाँ से पुणे से लेकर पंजाब तक आम के पौधे भेजे जाते है और यही निवासी कलीमुल्लाह जिन्होंने आम की फसल से ही पदम्श्री पुरस्कार भी हासिल किया और आम की कई ऐसी प्रजाति तेयार की दुर्लभ है।इन्ही की बनाई हुई एक प्रजाति है , इन्होने आठ साल पहले तेयार किया है इसकी खासियत ये है की इसके छिलके दो रंग के है, गुदे दो रंग के है , खुशबु दो तरह की और तो और इसका स्वाद भी दो तरह कई है। इसमे गोबर की खाद नियमित रूप से देनी चहिये।इस तरह से पौधे में दो साल में ही फल आने लगते है मगर पॉँच साल के पहले फल नही लेना चाइयेइससे पौधे कमजोर हो जाते है ।
गुठली भी कमाल की
आम की गुठली से आकाल के समय लोगो ने पेट की आग भी बुझाई थी मगर बरसात के समय फफूदी लगी रोटी खाने से ये लोगो की जान भी ले लेती है ।
इतिहासकार ग्रिपर्सन के इसका जिक्र किया है की देश के आदिवासी इलाके में गरीब लोग इसे ही खाके जीवन यापन करते है ।
कला में भी सामिल
भारत कला और संस्कृति का देश है जिसमे शिल्प कलाओ में आम का विशेष योगदान है जिसमे आम्र पल्लव के तोरण और अमिया के आकार को लेकर अनेक तरह के बेल बूटेभी रचे गए है कसीदाकारी में "अम्बी बिम्ब "का बार बार इस्तमाल किया है
देश की तरह व्यंजन भी
आंधी से गिरे कच्चे फल काआचार और कई प्रकार के व्यंजन भी बनते है बंगाल औ उत्तराखंड की महिलाये कई आचार रचे है जो भारतीये थाली का विशेषअंग है
गुजरात में आमरस को पूरी के साथ दिव्य भोज का रोप दिया गया है वहीँ गोवा में मंगदानाम से पानीर भी बनाया जाता है चरक ने सहकार सुरा नमक एक मदिरा का जिक्र किया है जो आम से ही बनता है
शुभ सगुन और देवता
देव्तावो में शिवजी को आम बहुत पसंद है चंडी मगल में उन्हें कच्चे आम का शोकिन बताया गया है मांगलिक मोके पर सजावट और सगुन के लिए आम कोजे जाते है गुठली भी कमाल की
आम की गुठली से आकाल के समय लोगो ने पेट की आग भी बुझाई थी मगर बरसात के समय फफूदी लगी रोटी खाने से ये लोगो की जान भी ले लेती है ।
इतिहासकार ग्रिपर्सन के इसका जिक्र किया है की देश के आदिवासी इलाके में गरीब लोग इसे ही खाके जीवन यापन करते है ।
कला में भी सामिल
भारत कला और संस्कृति का देश है जिसमे शिल्प कलाओ में आम का विशेष योगदान है जिसमे आम्र पल्लव के तोरण और अमिया के आकार को लेकर अनेक तरह के बेल बूटेभी रचे गए है कसीदाकारी में "अम्बी बिम्ब "का बार बार इस्तमाल किया है
देश की तरह व्यंजन भी
आंधी से गिरे कच्चे फल काआचार और कई प्रकार के व्यंजन भी बनते है बंगाल औ उत्तराखंड की महिलाये कई आचार रचे है जो भारतीये थाली का विशेषअंग है
गुजरात में आमरस को पूरी के साथ दिव्य भोज का रोप दिया गया है वहीँ गोवा में मंगदानाम से पानीर भी बनाया जाता है चरक ने "सहकार सुरा "नमक एक मदिरा का जिक्र किया है जो आम से ही बनता है
खट्टे मीठे स्वाद से भर पूर आम का मौसम जाने को है पर मौसम कोई भी आम का नाम आते ही मुंह में पानी आ जाता है। मगर आम का मौसम जारहा है तो क्या हुआ आएगा जरुर वापिस।
इसलिए तो हम बता रहे है कैसे करे आम की खेती और आम की बागवानी।आम की खेती के लिए यही मोसम सही होता जब आम के फल ख़म होते है तो आम के पौधे लगाने का समय शुरू होता है वैसे तो आम स्वाद का बखान हमारे देश में नही बल्कि विदेशो में भी है।आम भले ही हिन्दुस्तानी फल है मगर विदेश में इसकी अच्छी मांग है होगी भी क्यों नही फलो का raaja जो है ।भारत का खास फल होना होना हो इसका बेह्तिरीन स्वाद वजह कोई भी गर्मी के मौसम में ये हर हिन्दुस्तानी की थाली की शोभा है इस मौसम में हर घर में आम जरुर मिलेगा।ग्रंथो से लेकर पुराणों तक हर जगह इसकी गुण का बखान मिलता है ।
आम का इतिहास भी कम नही
१६७३ में यूरोप यात्री फ्रायर ने आम का स्वाद लिया और कसीदा ही कह डाला की इसने यूरोप के आडू ,खुबानी, सबके स्वाद भुला दिए,
बोद्ध जातको में बुद्ध द्वारा अपने प्रशंसक की आमराई में विश्राम करने के बाद जब उन्होंने अपने हाथ धुले और जहाँ जहाँ पानी छिड़का कालान्तर में वहां सफेद आम उग आया।
वैज्ञानिक के अनुसार
खट्टे मीठे स्वाद से भर पूर आम का मौसम जाने को है पर मौसम कोई भी आम का नाम आते ही मुंह में पानी आ जाता है। मगर आम का मौसम जारहा है तो क्या हुआ आएगा जरुर वापिस।
इसलिए तो हम बता रहे है कैसे करे आम की खेती और आम की बागवानी।आम की खेती के लिए यही मोसम सही होता जब आम के फल ख़म होते है तो आम के पौधे लगाने का समय शुरू होता है वैसे तो आम स्वाद का बखान हमारे देश में नही बल्कि विदेशो में भी है।आम भले ही हिन्दुस्तानी फल है मगर विदेश में इसकी अच्छी मांग है होगी भी क्यों नही फलो का raaja जो है ।भारत का खास फल होना होना हो इसका बेह्तिरीन स्वाद वजह कोई भी गर्मी के मौसम में ये हर हिन्दुस्तानी की थाली की शोभा है इस मौसम में हर घर में आम जरुर मिलेगा।ग्रंथो से लेकर पुराणों तक हर जगह इसकी गुण का बखान मिलता है ।
आम का इतिहास भी कम नही
१६७३ में यूरोप यात्री फ्रायर ने आम का स्वाद लिया और कसीदा ही कह डाला की इसने यूरोप के आडू ,खुबानी, सबके स्वाद भुला दिए,
बोद्ध जातको में बुद्ध द्वारा अपने प्रशंसक की आमराई में विश्राम करने के बाद जब उन्होंने अपने हाथ धुले और जहाँ जहाँ पानी छिड़का कालान्तर में वहां सफेद आम उग आया।
वैज्ञानिक के अनुसार
खट्टे मीठे स्वाद से भर पूर आम का मौसम जाने को है पर मौसम कोई भी आम का नाम आते ही मुंह में पानी आ जाता है। मगर आम का मौसम जारहा है तो क्या हुआ आएगा जरुर वापिस।
इसलिए तो हम बता रहे है कैसे करे आम की खेती और आम की बागवानी।आम की खेती के लिए यही मोसम सही होता जब आम के फल ख़म होते है तो आम के पौधे लगाने का समय शुरू होता है वैसे तो आम स्वाद का बखान हमारे देश में नही बल्कि विदेशो में भी है।आम भले ही हिन्दुस्तानी फल है मगर विदेश में इसकी अच्छी मांग है होगी भी क्यों नही फलो का raaja जो है ।भारत का खास फल होना होना हो इसका बेह्तिरीन स्वाद वजह कोई भी गर्मी के मौसम में ये हर हिन्दुस्तानी की थाली की शोभा है इस मौसम में हर घर में आम जरुर मिलेगा।ग्रंथो से लेकर पुराणों तक हर जगह इसकी गुण का बखान मिलता है ।
आम का इतिहास भी कम नही
१६७३ में यूरोप यात्री फ्रायर ने आम का स्वाद लिया और कसीदा ही कह डाला की इसने यूरोप के आडू ,खुबानी, सबके स्वाद भुला दिए,
बोद्ध जातको में बुद्ध द्वारा अपने प्रशंसक की आमराई में विश्राम करने के बाद जब उन्होंने अपने हाथ धुले और जहाँ जहाँ पानी छिड़का कालान्तर में वहां सफेद आम उग आया।
वैज्ञानिक के अनुसार
विज्ञानं के दिन प्रतिन अग्रसर होने का ही नतीजा है की कुछ वैज्ञानिक कहते है की आम भारत बर्मा के सीमावर्ती उत्तर पूर्वी क्षेत्र का है इसे किसी फल प्रेमी द्वारा अलग रूपा गया।आज भी सीमावर्ती क्षेत्र में आम्रतकनाम से आम की जंगली किस्म पाई जाती है जिसका लातिन नाम है पियांतो है
आम के नाम अनेक
आम को लोग इंग्लिश में मौंगो कहते है पर जरा सोचो इसका ये नाम किसने रखा आम का मौंगो नाम तमिल से निलका जबकि तमिल अब भी इसे मंगाया मनकाई खा जाता है १५१० में एक पुर्तगाली वारथेमा ने दक्षिण भारत में इसे चखा तो इसका ये नाम उधारले गया और आम महोदय मंगा से मेंगो हो गए।
कैसे होती खेती और कब होते है पौधे तैयार
आम ऐसा फल है जिसकी गुठली kahin भी फेकं दी जाए तो ये उग आते है मगर अच्छी उपज के लिए कलम लगायी जाती है
कैसे लगती है कलम
एक बीज को जमीन में गाड़दिया जाता है और निकलने वाले पौधे को मदर प्लांट कहते है और इसे एक साल बाद गिरा दिया जाता है । फिर इसी पौधे के निचे दूसरा बीज डाला जाता है और उससे निकले वाले पौधे और मदर प्लांट की टहनी को सटा के बाँध देते है ।इस तरह इसकी कलम तेयार होती है विज्ञानं के दिन प्रतिन अग्रसर होने का ही नतीजा है की कुछ वैज्ञानिक कहते है की आम भारत बर्मा के सीमावर्ती उत्तर पूर्वी क्षेत्र का है इसे किसी फल प्रेमी द्वारा अलग रूपा गया।आज भी सीमावर्ती क्षेत्र में आम्रतकनाम से आम की जंगली किस्म पाई जाती है जिसका लातिन नाम है पियांतो है
आम के नाम अनेक
आम को लोग इंग्लिश में मौंगो कहते है पर जरा सोचो इसका ये नाम किसने रखा आम का मौंगो नाम तमिल से निलका जबकि तमिल अब भी इसे मंगाया मनकाई खा जाता है १५१० में एक पुर्तगाली वारथेमा ने दक्षिण भारत में इसे चखा तो इसका ये नाम उधारले गया और आम महोदय मंगा से मेंगो हो गए।
कैसे होती खेती और कब होते है पौधे तैयार
आम ऐसा फल है जिसकी गुठली kahin भी फेकं दी जाए तो ये उग आते है मगर अच्छी उपज के लिए कलम लगायी जाती है
कैसे लगती है कलम
एक बीज को जमीन में गाड़दिया जाता है और निकलने वाले पौधे को मदर प्लांट कहते है और इसे एक साल बाद गिरा दिया जाता है । फिर इसी पौधे के निचे दूसरा बीज डाला जाता है और उससे निकले वाले पौधे और मदर प्लांट की टहनी को सटा के बाँध देते है ।इस तरह इसकी कलम तेयार होती है विज्ञानं के दिन प्रतिन अग्रसर होने का ही नतीजा है की कुछ वैज्ञानिक कहते है की आम भारत बर्मा के सीमावर्ती उत्तर पूर्वी क्षेत्र का है इसे किसी फल प्रेमी द्वारा अलग रूपा गया।आज भी सीमावर्ती क्षेत्र में आम्रतकनाम से आम की जंगली किस्म पाई जाती है जिसका लातिन नाम है पियांतो है
आम के नाम अनेक
आम को लोग इंग्लिश में मौंगो कहते है पर जरा सोचो इसका ये नाम किसने रखा आम का मौंगो नाम तमिल से निलका जबकि तमिल अब भी इसे मंगाया मनकाई खा जाता है १५१० में एक पुर्तगाली वारथेमा ने दक्षिण भारत में इसे चखा तो इसका ये नाम उधारले गया और आम महोदय मंगा से मेंगो हो गए।
कैसे होती खेती और कब होते है पौधे तैयार
आम ऐसा फल है जिसकी गुठली kahin भी फेकं दी जाए तो ये उग आते है मगर अच्छी उपज के लिए कलम लगायी जाती है
कैसे लगती है कलम
एक बीज को जमीन में गाड़दिया जाता है और निकलने वाले पौधे को मदर प्लांट कहते है और इसे एक साल बाद गिरा दिया जाता है । फिर इसी पौधे के निचे दूसरा बीज डाला जाता है और उससे निकले वाले पौधे और मदर प्लांट की टहनी को सटा के बाँध देते है ।इस तरह इसकी कलम तेयार होती है इसमे गोबर की खाद नियमित रूप से देनी चहिये।इस तरह से पौधे में दो साल में ही फल आने लगते है मगर पॉँच साल के पहले फल नही लेना चाइयेइससे पौधे कमजोर हो जाते है ।
कहाँ मिलती है खास नर्सरी
मलीहाबादी आम हर कोई जानता है जितना वो आम के फल के लिए मशहूर है उतना ही आम की नर्सरी के लिए भी हम बताते है कैसे।यह एक ऐसी जगह है जहाँ से पुणे से लेकर पंजाब तक आम के पौधे भेजे जाते है और यही निवासी कलीमुल्लाह जिन्होंने आम की फसल से ही पदम्श्री पुरस्कार भी हासिल किया और आम की कई ऐसी प्रजाति तेयार की दुर्लभ है।इन्ही की बनाई हुई एक प्रजाति है , इन्होने आठ साल पहले तेयार किया है इसकी खासियत ये है की इसके छिलके दो रंग के है, गुदे दो रंग के है , खुशबु दो तरह की और तो और इसका स्वाद भी दो तरह कई है। इसमे गोबर की खाद नियमित रूप से देनी चहिये।इस तरह से पौधे में दो साल में ही फल आने लगते है मगर पॉँच साल के पहले फल नही लेना चाइयेइससे पौधे कमजोर हो जाते है ।
कहाँ मिलती है खास नर्सरी
मलीहाबादी आम हर कोई जानता है जितना वो आम के फल के लिए मशहूर है उतना ही आम की नर्सरी के लिए भी हम बताते है कैसे।यह एक ऐसी जगह है जहाँ से पुणे से लेकर पंजाब तक आम के पौधे भेजे जाते है और यही निवासी कलीमुल्लाह जिन्होंने आम की फसल से ही पदम्श्री पुरस्कार भी हासिल किया और आम की कई ऐसी प्रजाति तेयार की दुर्लभ है।इन्ही की बनाई हुई एक प्रजाति है , इन्होने आठ साल पहले तेयार किया है इसकी खासियत ये है की इसके छिलके दो रंग के है, गुदे दो रंग के है , खुशबु दो तरह की और तो और इसका स्वाद भी दो तरह कई है। इसमे गोबर की खाद नियमित रूप से देनी चहिये।इस तरह से पौधे में दो साल में ही फल आने लगते है मगर पॉँच साल के पहले फल नही लेना चाइयेइससे पौधे कमजोर हो जाते है ।
गुठली भी कमाल की
आम की गुठली से आकाल के समय लोगो ने पेट की आग भी बुझाई थी मगर बरसात के समय फफूदी लगी रोटी खाने से ये लोगो की जान भी ले लेती है ।
इतिहासकार ग्रिपर्सन के इसका जिक्र किया है की देश के आदिवासी इलाके में गरीब लोग इसे ही खाके जीवन यापन करते है ।
कला में भी सामिल
भारत कला और संस्कृति का देश है जिसमे शिल्प कलाओ में आम का विशेष योगदान है जिसमे आम्र पल्लव के तोरण और अमिया के आकार को लेकर अनेक तरह के बेल बूटेभी रचे गए है कसीदाकारी में "अम्बी बिम्ब "का बार बार इस्तमाल किया है
देश की तरह व्यंजन भी
आंधी से गिरे कच्चे फल काआचार और कई प्रकार के व्यंजन भी बनते है बंगाल औ उत्तराखंड की महिलाये कई आचार रचे है जो भारतीये थाली का विशेषअंग है
गुजरात में आमरस को पूरी के साथ दिव्य भोज का रोप दिया गया है वहीँ गोवा में मंगदानाम से पानीर भी बनाया जाता है चरक ने सहकार सुरा नमक एक मदिरा का जिक्र किया है जो आम से ही बनता है
शुभ सगुन और देवता
देव्तावो में शिवजी को आम बहुत पसंद है चंडी मगल में उन्हें कच्चे आम का शोकिन बताया गया है मांगलिक मोके पर सजावट और सगुन के लिए आम कोजे जाते है गुठली भी कमाल की
आम की गुठली से आकाल के समय लोगो ने पेट की आग भी बुझाई थी मगर बरसात के समय फफूदी लगी रोटी खाने से ये लोगो की जान भी ले लेती है ।
इतिहासकार ग्रिपर्सन के इसका जिक्र किया है की देश के आदिवासी इलाके में गरीब लोग इसे ही खाके जीवन यापन करते है ।
कला में भी सामिल
भारत कला और संस्कृति का देश है जिसमे शिल्प कलाओ में आम का विशेष योगदान है जिसमे आम्र पल्लव के तोरण और अमिया के आकार को लेकर अनेक तरह के बेल बूटेभी रचे गए है कसीदाकारी में "अम्बी बिम्ब "का बार बार इस्तमाल किया है
देश की तरह व्यंजन भी
आंधी से गिरे कच्चे फल काआचार और कई प्रकार के व्यंजन भी बनते है बंगाल औ उत्तराखंड की महिलाये कई आचार रचे है जो भारतीये थाली का विशेषअंग है
गुजरात में आमरस को पूरी के साथ दिव्य भोज का रोप दिया गया है वहीँ गोवा में मंगदानाम से पानीर भी बनाया जाता है चरक ने "सहकार सुरा "नमक एक मदिरा का जिक्र किया है जो आम से ही बनता है
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