आखिर क्यों?
कही शक्ति का अवतार तो कभी ममता का मूरत कही जाने वाली औरत को क्यों हर कदम पर पुरुषों के बुरी दिर्ष्टसे दो चार पड़ता है,आज के दौर में जहाँ युवतिया हर क्षेत्र में अपना पाँव जमा रही है और ख़ुद को साबित भी क्र चुकी है मगर उनकी इतनी तरक्की के बावजूद उन्हें इन समस्या का सामना करना ही पड़ता है ,घर में कभी बेटी तो कहीं बहेन बनकर मां बाप का गौरव बढाती है तो वहीं ससुराल में पति और बच्चो के खुशी के लिए हर दर्द सहने को तत्पर रहती है ,मगर जब यही औरत अपने वाजूद के लिए कुछ करना चाहती है और घर के चार दिवारी से बाहर निकलती है तो समाज के ठेकेदार पुरूष हर मोड़ पर इनका इस्तमाल करने को खड़े मिलते है कभी ये ऑफिस में बॉस प्रमोशन के वजह से प्रताडित होती है तो कही तन्खवाह बढ़ाने के लिए इनका यौन शोषण का सौदा किया जाता है ,क्या पुरुष होने का यही मतलब होता है की अपने समकक्ष खड़ी औरत के दमन को दागदार कर देना,पुरुषो की महानता और वीरता का यही परिचय रह गया है की सड़क पर चलते समय औरतो को छेड़ दिया जाए या उनके कपड़े खीच लिए जाए ताकि वो गिरे और हम उन्हें देख कर मजे ले ये घटनाये सिर्फ़ लड़कियों के साथ ही नही बल्कि उम्रदराज औरतो के साथ भी होती है,इनमे आज कल मनचलों के साथ वो लोग भी पीछे नही है जो अपने जीवन के ५० सावन देख चुके है,आज जहा हर तरह औरत ख़ुद में सक्षम है अकेले कुछ करने की वही इसकी मुसीबते भी काम नही है देर रात तक काम करना आज हर संस्था में मामूली बात है मगर जब देर रात में युवतिया वापिस घर जाती है तो रास्ते में सोहदे मिल ही जाते है , इनका शिकार करने के लिए दिन हो या रात इन्हे कोई फर्क नही पड़ता बस औरत मिलनी चाहिए,योन शोषण इस कदर फैल चुका है की ये मनचले भीड़ भाड़ वाली जगहों पर भी ये अपनी करतूत से बाज़ नही आते, आलम ये हो चुका है की कार चलने वालो से लेकर दो पहिया चालक भी बगल से निकलने वाली औरत को चलती गाड़ी से छेड़ना का प्रयास करते है जिन्हें इस बात की कोई परवाह नही होती की उनके ऐसा करने से उस महिला की जान भी जा सकती है,शहर में आए दिन ऐसे होने वाली ऐसी घटनाये किसी लिहाज़ में कम नही हो रही है
तो क्या औरत होना अपराध है अगर नही तो क्यों हर कदम पर इन्हे ऐसी अवस्था से दो चार होना पड़ता है ,हर मोड़ पर इनके भक्षक खड़े मिलते है इस बारे लखनऊ महिला थाने की उपनिरीक्षक अमरवती का कहना है की ,अक्सर जब लड़कियां जब ऐसी घटना का शिकार होती है तो शर्म और बेज्जती के भय से शिकायत दर्ज नही करतीं है मगर उन्हें ही इस पहल के लिए आगे आना होगा और कोशिश करनी चाहिये की घर से बहार निकलते समय किसी को साथ लेके निकले (दीपा श्रीवास्तव मेरे द्वारा लिखित ये लेख वीकेंड टाईम्स हिन्दी साप्ताहिक में छप चुका hai)

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Best one

अब तो जागो