शराब के नशे में धुत होती दुनिया
बरबाद होती जिन्दगी तबाह होते घर और बिगड़ते भविष्य ये सब शराब ही कर सकती है ,मगर फिर भी लोग इसे अमृत की तरह पीते है, चाहे वो घर पर होने वाला छोटे दे फंक्शन की बात हो या शादी विवाह हर पार्टी में शराब की रोनक बरक़रार रहती है,शराब और उसका नशा आज हमारे युआ और पार्टी की शान है,आज हर महफिल इसके बिना अधूरी है जहाँ ये लोगो की महफिल की रोनक है वहीँ दूसरी तरफ यह उन्हें गुमराह करने की भी अहम् भूमिका निभाती है
अब तो आलम ये हो गया है की इसका लुप्त व्यस्कों और युआ के साथ बच्चे भी उठाने लगे है,उनके परिवार भी उनका पूरी सहयोग करते है यही वजह है की बदलते दौर के साथ चीजो के मायने भी बदलने लगे है ,आज शराब की दुकान हर कस्बेऔर मोहल्ले में देखने को मिल जायेगी ,भले सरकार ने इस पर रोक लगाया हो की शराब की दुकान मन्दिर और स्कूल के पास नही होगी मगर ऐसा कुछ नहीं है ,मन्दिर और स्कूल के पास अभी भी शराब की दुकान मिल जायेगी क्युकी जितनी तादाद में लोग इसका विरोध करने वाले है उससे कहीं जादा तादाद में लोग इसका समर्थन करते है ,कहते है ,दिक्कत क्या है चल रही है तो चलने दो कोई मन्दिर में तो नही पीता है ना ,
हर तरफ ऐसे लोग देखने को मिल जाते है जो कहते है शराब इन्सान को चिंता मुक्त करती है और सुकून मिलता है ,शायद उन्हें इस बात का पता नही की शराब चिंता मुक्ति के साथ जीवन से भी मुक्त कर देती है,
दूसरी तरफ ये लोगो के घर को उजाड़ने में भी कोई कसर नही छोड़ती, घर में झगडे ,मारपीट पारिवारिक कलह की जड़ भी यही है ,
जिससे आए दिन घर में रहने वाली महिला को दो चार होना पड़ता है ,गरीब लोग इसे रोज की दिनचर्या में सामिल कर चुके है सिर्फ़ इसका खुले आम बिकना ही इन सब की वजह है ,जिसपर न तो सरकार का शासन कम आ रहा है न लोगो की दुर्दशा ,हर दिन हमे कहीं रेलवे स्टेशन पर तो कहीं गालियो और सडको के किनारे नशे में धुत्त कुछ लोग मिल ही जायेगे जिनके लिए इतना ही कहना काफी होगा ,
"जामे शराब में जो सुकू है वो कहीं और कहाँ है "
"बहुत राहत है इसे पीने और पिलाने में "
"इसमे जीने और रहने में गलती कहाँ है "
"इक कतरा भुला देता है सारे ग़मों दर्द को "
"ऐसी राहत किसी और में कहाँ है "
"ये ले आती है जुबान पर सच की हकीकत "
"पीने वाले खोज ही लेते है मधुशाला कहाँ है "
(दीपा श्रीवास्तव)
बरबाद होती जिन्दगी तबाह होते घर और बिगड़ते भविष्य ये सब शराब ही कर सकती है ,मगर फिर भी लोग इसे अमृत की तरह पीते है, चाहे वो घर पर होने वाला छोटे दे फंक्शन की बात हो या शादी विवाह हर पार्टी में शराब की रोनक बरक़रार रहती है,शराब और उसका नशा आज हमारे युआ और पार्टी की शान है,आज हर महफिल इसके बिना अधूरी है जहाँ ये लोगो की महफिल की रोनक है वहीँ दूसरी तरफ यह उन्हें गुमराह करने की भी अहम् भूमिका निभाती है
अब तो आलम ये हो गया है की इसका लुप्त व्यस्कों और युआ के साथ बच्चे भी उठाने लगे है,उनके परिवार भी उनका पूरी सहयोग करते है यही वजह है की बदलते दौर के साथ चीजो के मायने भी बदलने लगे है ,आज शराब की दुकान हर कस्बेऔर मोहल्ले में देखने को मिल जायेगी ,भले सरकार ने इस पर रोक लगाया हो की शराब की दुकान मन्दिर और स्कूल के पास नही होगी मगर ऐसा कुछ नहीं है ,मन्दिर और स्कूल के पास अभी भी शराब की दुकान मिल जायेगी क्युकी जितनी तादाद में लोग इसका विरोध करने वाले है उससे कहीं जादा तादाद में लोग इसका समर्थन करते है ,कहते है ,दिक्कत क्या है चल रही है तो चलने दो कोई मन्दिर में तो नही पीता है ना ,
हर तरफ ऐसे लोग देखने को मिल जाते है जो कहते है शराब इन्सान को चिंता मुक्त करती है और सुकून मिलता है ,शायद उन्हें इस बात का पता नही की शराब चिंता मुक्ति के साथ जीवन से भी मुक्त कर देती है,
दूसरी तरफ ये लोगो के घर को उजाड़ने में भी कोई कसर नही छोड़ती, घर में झगडे ,मारपीट पारिवारिक कलह की जड़ भी यही है ,
जिससे आए दिन घर में रहने वाली महिला को दो चार होना पड़ता है ,गरीब लोग इसे रोज की दिनचर्या में सामिल कर चुके है सिर्फ़ इसका खुले आम बिकना ही इन सब की वजह है ,जिसपर न तो सरकार का शासन कम आ रहा है न लोगो की दुर्दशा ,हर दिन हमे कहीं रेलवे स्टेशन पर तो कहीं गालियो और सडको के किनारे नशे में धुत्त कुछ लोग मिल ही जायेगे जिनके लिए इतना ही कहना काफी होगा ,
"जामे शराब में जो सुकू है वो कहीं और कहाँ है "
"बहुत राहत है इसे पीने और पिलाने में "
"इसमे जीने और रहने में गलती कहाँ है "
"इक कतरा भुला देता है सारे ग़मों दर्द को "
"ऐसी राहत किसी और में कहाँ है "
"ये ले आती है जुबान पर सच की हकीकत "
"पीने वाले खोज ही लेते है मधुशाला कहाँ है "
(दीपा श्रीवास्तव)
Comments
जो कायर हैं वो जाते मयखाने में
संघर्घ करने में जो है नशा
वो कहां जाम छलकाने में