पत्रकारिता और दुनिया


पत्रकारिता एक मिशन न होके अब ग्लेमर हुआ जा रहा है आज की युवा पीढी के लिए.जिसमे न ही अच्छा भविष्य है बल्कि लोगो की सहायता करने के भी बहुत अवसर है.पत्रकारिता के भाषा की पकड़ उतनी जरुरी हैं जितना जीने के लिए पानी,चाहे वो भाषा इंग्लिश हो या हिन्दी या उर्दू जिसके बिना पत्रकारिता नही हो सकती.ऐसे ही और कई नियम बताये "अंजलि सिंह जयसवाल"ने महाराणा प्रताप के छात्रों को।

पत्रकारिता में लोग टी.वी चैनल और अखबार में आज अपने कदम जमाना चाहते है मगर उससे कही जादा अवसर है ख़ुद को साबित करने का "देवेलोप्मेंट कम्युनिकेशन " के क्षेत्र में,जिसमे उनकी समस्या सामने आती है जिन्हें लोग छूना तो दूर देखना भी नही पसंद करते है। वो है गरीब और अनाथ बच्चे जो ज्यादातर सडको पर पड़े रहते है।जिन्हें लोग देखकर एक दो रूपये दे सकते है।उन्हें यहाँ से कैसे निकला जाए ये बहुत कम लोग सोचते है जो सोचते हैं वो इस क्षेत्र में आते है और ऐसी समस्या को उजागर करते है।जोकि "उन्नति संचार"कहलाता है ।

पत्रकारों के लिए हमेशा एक "शब्द"है वो है "क्यो"।जब तक "क्यो "का पता ये नही लगायेगे तब तक काम अधूरा होगा।हर लेख हर समाचार "क्यो"से ही शुरू होता है।जिसके लिए इस क्षेत्र में हमेशा तैयार होना चाहिए की अगर ये है तो क्यों है।

पत्रकारिता बिना शोध के नही हो सकती .हमेशा कोई लेख लिखने के पहले पूरी शोध कर लेना चाहिए ताकि कहानी सशक्त हो और लोग इसे पढ़ें.इस क्षेत्र के लोगो को अधूरी जानकारी या कही सुनी बातो पर कुछ नही लिखना चाहिए .हमेशा कोशिश करनी चाहिए की खुद जाके पता करे फिर कुछ लिखे ।जिन्होंने इतनी जानकारी दी पत्रकारिता के छात्रों को। अंजलि जायसवाल जो की खुद पत्रकार है इस क्षेत्र में इनकी एक अलग पहचान बन चुकी है ।

(दीपा श्रीवास्तव)

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अब तो जागो